कहानी संग्रह >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकान्त
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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मदद का सुख
सामान को लटकाकर चलते हुए
दया बहन जी का हाथ दर्द करने लगा था तभी उनके पास एक साईकिल आकर रूकी।
साईकिल सवार ने चरण छूकर वंदना की।
‘बहन जी मैं आपको स्टेशन तक छोड़ आता हूं।’ कहते हुए वह सामान पकड़ने लगा।
‘अरे बेटा... मैं ले जाऊंगी।’ दया बहन जी ने औपचारिकता दिखाई।
वह बहन जी के दोनों बैग साईकिल पर लटकाकर साथ-साथ चलने लगा।
‘क्या काम करते हो बेटे?’ दया बहन जी ने पूछा।
‘बहन जी उस दिन आपने मेरी फीस जमा न करायी होती तो मैं कुछ भी नहीं बन पाता। आपने मेरी फीस देकर पढ़ाई पूरी करायी उसी के परिणाम स्वरूप मैं आज एक फैक्ट्री में सुपरवाइजर हूं...।’
अचानक सड़क पर बस आती दिखाई दी।
उसने आवाज लगाकर बस को रुकवाया। सामान अंदर रखवाकर मुझे बस में बैठाया।
बस चलने के बाद मैं सोच रही थी-बीस रूपये की सहायता के बदले इतनी बड़ी खुशी आत्म गौरव से उसका मन प्रफुल्लित हो रहा था।
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