जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
कलकत्ता वापस
लौटकर उन्होंने बड़ी बेटी माधुरी लता और संझली बेटी रेणुका की शादी कर दी।
इसके बाद रवीन्द्रनाथ सपरिवार शांतिनिकेतन चले गए। दिसम्बर सन् 1901
(बांग्ला 7 पौष 1308) को बोलपुर ब्रह्मचर्याश्रम की शुरूआत हुई। वहां
पढ़ाने के लिए शिलाईदह ठाकुरबाड़ी के कई अध्यापक और ब्रह्मबांधव उपाध्याय
तथा एक सिंधी युवक रेवाचंद भी आए। शुरू-शुरू में कुल पांच छात्र थे,
जिनमें रवीन्द्रनाथ ठाकुर तथा संतोषचन्द्र मजुमदार प्रमुख थे। ब्रह्मबांधव
उपाध्याय ने रवीन्द्रनाथ को ''गुरूदेव'' कहना शुरू किया, बाद में इसे
महात्मा गांधी ने लोकप्रिय बनाया। ब्रह्मबांधव के चले जाने के बाद मनोरंजन
बंद्योपाध्याय हेडमास्टर बनकर आए। प्राचीन तपोवन के आदर्श पर बिना वेतन
लिए आश्रम विद्यालय का काम शुरू हुआ। आश्रम में रहने वाले छात्रों के लिए
सिर मुड़ाना, नंगे पैर रहना और शाकाहारी होना जरूरी था।
बोलपुर
ब्रह्मचर्याश्रम का खर्च शुरू में रवीन्द्रनाथ ने अपनी पत्नी के गहने
बेचकर चलाया था। मृणालिनी देवी इस आश्रम की माताजी थीं। उन्होंने सभी
छात्रों की देखभाल, खाने-पीने का भार खुद उठा लिया। अचानक वे बेहद बीमार
पड़ गई। उन्हे लेकर रवीन्द्रनाथ कलकत्ता चले गए। लेकिन एक दिन मृणालिनी
देवी जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी की माया-ममता को छोड़कर इस दुनिया से चली गई।
अपनी पत्नी के न रहने पर कवि ने उनकी याद में कई कविताएं लिखीं। वे सब
''स्मरण'' नामक कविता पुस्तक में शामिल हैं। कुछ दिनों के बाद संझली बेटी
रेणुका की भी मृत्यु हो गई। जब रवीन्द्रनाथ रेणुका को लेकर कुछ दिनों तक
अल्मोड़ा में थे, तब बच्चों की कुछ कविताएं वहां उन्होंने लिखी थीं। उसी के
साथ वे ''बंग दर्शन'' के लिए भी ''नौका डूबी'' उपन्यास धारावाहिक रूप से
लिख रहे थे।
शांतिनिकेतन में अपने नए
विद्यालय को लेकर रवीन्द्रनाथ
को बेहद चिंता रहती थी। वहां के हेडमास्टर के रूप में वे मोहितचंद्र सेन
को ले आए। धीरे-धीरे छात्रों की तादाद बढ़ रही थी। मोहितचंद्र सेन की तबीयत
खराब हो जाने के कारण वे वहां से चले गए। उनकी जगह भूपेन्द्रनाथ सन्याल
आए। उन्होंने कुछ दिनों तक वहां का काम संभाला। लेकिन वे भी वहां ज्यादा
दिन नहीं रहे। इसी तरह रवीन्द्रनाथ के विद्यालय का काम चलता रहा।
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