जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
सन्
1897 में राजशाही जिले के नाटोर में महाराजा जगदिनेन्द्रनाथ राय के बुलावे
पर बंगीय प्रादेशिक सम्मेलन का सालाना जलसा हुआ। उसमें कांग्रेस के
जाने-माने प्रतिनिधियों के अलावा ठाकुरबाड़ी के काफी लोग, जैसे कि
रवीन्द्रनाथ, अवनीन्द्रनाथ वगैरह भी शामिल हुए थे।
ठाकुरबाड़ी के
सत्येन्द्रनाथ को सभापति बनाया गया। उनके और डबल्यु. सी. बनर्जी जैसे
प्रमुख नेताओं के अंग्रेजी भाषण पर दर्शकों में बैठे रवीन्द्रनाथ ने विरोध
करते हुए उनसे बांग्ला में बोलने के लिए कहा। जलसे के दौरान जर्बदस्त
भूकंप आने से हड़कंप मच गया। नेता लोग अपनी जान बचाकर वहां से लौट आए। मगर
वह जुलूस बांग्ला भाषा के दावे के कारण यादगार बन गया।
सन् 1898
में ''भारती'' पत्रिका के संपादन का भार रवीन्द्रनाथ पर पड़ा। इसी बीच वे
''चित्रांगदा'', ''गांधारीर आवेदन'' (गांधारी का निवेदन) ''नरकवास'',
''लक्ष्मीर परीक्षा'' (लक्ष्मी की परीक्षा) आदि कविताएं लिख चुके थे।
''भारती'' के कारण रवीन्द्रनाथ का लिखना भी ज्यादा बढ़ गया। और उसके लिए
कहानी, कविता, लेख सभी कुछ लिखना पड़ा। उन्हीं दिनों महाराष्ट्र में प्लेग
फैल गया। क्रांतिकारी चापेकर भाइयों ने अंग्रेज प्लेग अधिकारी और
मजिस्ट्रेट की गोली मारकर हत्या कर दी। बाल गंगाधर तिलक गिरफ्तार हुए।
रवीन्द्रनाथ ने इसके विरोध में टाउनहाल की एक बड़ी जनसभा में ''कंठरोध''
नाम से अपना तीखा लेख पढ़ा। तिलक महाराज के साथ कवि की खूब पटती थी। तिलक
चाहते थे कि रवीन्द्रनाथ विलायत जाकर भारत की आजादी के बारे में लोगों को
बताएं। दोनों कभी राजनैतिक विचारों में एक दूसरे के काफी करीब थे। कुछ
दिनों के बाद ढाका में हुए प्रदेश सम्मेलन में रवीन्द्रनाथ ने एक गीत
सुनाया। इसमें साथ ही सभापति रेवरेंड कालीचरण बंधोपाध्याय के अंग्रेजी
भाषण का बांग्ला में अनुवाद भी किया।
प्रेसीडेंसी कालेज के
भौतिक
शास्त्र के अध्यापक जगदीशचंद्र बोस से रवीन्द्रनाथ की दोस्ती थी, उन्हीं
के अनुरोध से त्रिपुरा के महाराजा राधा किशोर माणिक्य ने, जगदीशचंद्र बोस
को विलायत में अपना शोध कार्य जारी रखने के लिए, धन से मदद की थी। सन्
1901 से बंकिमचंद्र द्वारा शुरू किए गए ''बंगदर्शन'' को नए सिरे से
प्रकाशित किया जाने लगा। इसका सम्पादक रवीन्द्रनाथ को बनाया गया। उसी में
वे ''चोखेर बाली'' (आंख की किरकिरी) नामक उपन्यास धारावाहिक लिखने लगे। वह
बांग्ला साहित्य का पहला मनोवैज्ञानिक उपन्यास था। इसके बाद ही
रवीन्द्रनाथ ने ''नष्टनीड़'' नामक एक असाधारण कहानी लिखी। 'नैवेद्य' नामक
भक्ति रस से भरपूर कविताएं भी इसी बीच लिखी गई।
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