जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
|
0 |
रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
इधर देश की राजनीतिक
समस्या बढ़ती जा रही थी। कवि से चुप बैठते नहीं बना। हिन्दू-मुसलमानों के
बीच दंगे बढ़ने लगे। रवीन्द्रनाथ ने ''प्रवासी'' में ''रोग और निदान'' नामक
एक लेख में लिखा - ''आज हिन्दू मुसलमान को प्रेम की नजरों से देखना पसंद
नहीं कर रहा है, उधर मुसलमान भी हिन्दुओं पर भरोसा करने से हिचक रहे हैं।
यह जो एक दूसरे के प्रति अनादर और अविश्वास पैदा हुआ है, यही हमारे जीवन
का सबसे बड़ा संकट बन गया है।'' रवीन्द्रनाथ ने सवाल किया, 'स्वदेश को
किसके हाथों से आजाद कराना है?' देश के भीतर भी तरह-तरह के झगड़े-झंझट चल
रहे थे। रवीन्द्रनाथ ने इस माहौल से अपने को दूर ही रखा।
वे
गांवों को सुधारने के काम में जुट गए। शिलाईदह उनकी प्रधान कर्मभूमि बनीं।
उन्होंने लिखा है - ''मैं इन दिनों गांव समाज की बेहतरी के लिए जुटा हुआ
हूं। अपनी जमींदारी को मैं गांव सुधार के उदाहरण के रूप में दिखाना चाहता
हूं। मैंने अपना काम शुरू कर दिया है।'' ऐसा ही था भी। वे गांव के लोगों
के साथ सड़क बनाने, तालाब ठीक करने, जंगल साफ करने आदि तरह-तरह के कामों
में जुट गए। उन्होंने एक पत्र में लिखा - ''मैं गांवों में सचमुच के
स्वराज की स्थापना करना चाहता हूं। जो पूरे देश में होना चाहिए, उसी का एक
ढांचा यहां तैयार कर रहा हूं।''
रवीन्द्रनाथ जब गांव
सुधार के
काम में जुटे थे, उन्होंने अखबारों में पढ़ा कि सन् 1907 के दिसम्बर में
सूरत कांग्रेस में काफी गड़बड़ी होने के कारण महासभा रद्द करनी पड़ी।
रवीन्द्रनाथ सूरत का समाचार पढ़कर बहुत परेशान हुए। उन्होंने दोनों गुटों
की बातें जानकर ''प्रवासी'' पत्रिका में 'यज्ञभंग' नाम से एक लेख लिखा।
मध्यपंथियों और चरमपंथियों के आपसी झगड़े की उन्होंने निंदा की। उन्होंने
लिखा कि सभा या जुलूस से ज्यादा जनता को जोड़ना जरूरी है। दोनों ही गुटों
के गुस्से के कारण 1910 को पाबना में होने वाले बंगीय प्रादेशिक सम्मेलन
के सभापति पद को लेकर झगड़ा और बढ़ गया। लोगों के काफी कहने पर आखिरकार
रवीन्द्रनाथ सभापति बनने को तैयार हुए। इस सम्मेलन में रवीन्द्रनाथ ने
बांग्ला में अपना भाषण पढ़ा। अब तक जितने भी सभापति हुए थे, सब अपना भाषण
अंग्रेजी में पढ़ते आए थे। हालांकि इस सम्मेलन में लोगों को उनका भाषण खास
पसंद नहीं आया, क्योंकि उस भाषण में उन्होंने कई चीजों के प्रति अपना
विरोध प्रकट किया था।
|