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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841
आईएसबीएन :9781613015599

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


दस बारह दिन बाद बंगाल के छोटे लाल लार्ड कारमाइकल शांतिनिकेतन में आए। कुछ समय पहले सभी सरकारी कर्मचारियों के घरों में एक सरकारी सूचना पहुंची थी कि वे अपने बच्चों का दाखिला शांतिनिकेतन में न करवाएं। रवीन्द्रनाथ के नोबल पुरस्कार मिलने के बाद इस सरकारी सूचना को रद्द करके खुद छोटे लाट शांतिनिकेतन पहुंचे। आम्रकुंज के नीचे एक नया चबूतरा बनाकर कारमाइकल साहब को सम्मानित किया गया। आज भी वह चबूतरा ''कारमाइकल वेदी'' के नाम से जाना जाता है।

इस बीच रवीन्द्रनाथ ने ''चतुरंग'' नामक उपन्यास लिखा। उन्हीं दिनों साहित्य में सच के सवाल पर विपिनचन्द्र पाल ने रवीन्द्रनाथ के साहित्य की आलोचना की। अजित कुमार चक्रवर्ती, प्रमथ चौधुरी आदि ने उसका जवाब दिया। रवीन्द्रनाथ की प्रसिद्ध कहानी ''स्त्रीर पत्र'' (स्त्री का पत्र) नकली सच्चाई पसंद लोगों को पसंद नहीं आई थी। विपिनचंद्र पाल ने ''मृणालेर पत्र'' (मृणाल का पत्र) नाम से एक जवाबी कहानी लिखी। विपिनचंद्र पाल का साथ दिया गिरिजा शंकर राय चौधुरी ने। चितरंजन दास की ''नारायण'' पत्रिका में भी रवीन्द्रनाथ लिखते रहे।

3 जून 1915 को रवीन्द्रनाथ को ''सर'' की उपाधि प्रदान की गयी। यह एक बड़ी घटना थी। कवि उन्हीं दिनों कश्मीर की सैर पर गये थे। वहां वे कुछ दिन शिकारे में रहे। ''बलाका'' की प्रसिद्ध कविता सांझ के समय झिलमिलाते झेलम का बंकिम प्रवाह वहीं पर लिखी गयी थी। शेक्सपियर की तीन सौंवी जयंती के अवसर पर भी उन्होंने एक कविता लिखी। कश्मीर से लौटते ही वे शिलाईदह चले गए। वापस लौटकर उन्होंने अपना एक प्रसिद्ध लेख पढ़ा - ''शिक्षार वाहन'' (शिक्षा का माध्यम) उसमें उन्होंने कहा, ''मातृभाषा मां के दूध के समान हैं।''

कवि की बहुत दिनों से जापान जाने की इच्छा थी। वे सन् 1916 में एक जापानी जहाज से रवाना हुए। उनके साथ एंड्रूज, पियर्सन और मुकुल देव भी थे। वे रंगून, पेनांग, सिंगापुर, हांगकांग होते हुए जापान के कोबे बंदरगाह पहुंचे। वहां से ओसाका गये, वहां भाषण भी दिया। वे टोकियो पहुंचकर अपने पहले के परिचित जापानी चित्रकार टाइकान के मेहमान बने। टाइकान कुछ दिन जोड़ासांको में भी रहे थे। इसके बाद भाषणों और सम्मान का सिलसिला शुरू हुआ। टोकियो विश्वविद्यालय में भाषण देने के बाद ही उवोनो पार्क में उनके सम्मान में एक सभा हुई। उन्होंने एक सभा में जापानियों की हमलावर नीति की निंदा भी की। जाहिर है जापानियों को उनकी यह बात पसंद नहीं आई। जापान में रहने के दौरान टोमोवादाकोरो नामक एक जापानी युवती से उनका परिचय हुआ। वह परिचय और गहरा हुआ। वे बाद में शांतिनिकेतन भी आई थीं। रवीन्द्रनाथ की प्रशंसिकाओं में उनका नाम आदर से लिया जाता है।

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