लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841
आईएसबीएन :9781613015599

Like this Hindi book 0

रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


उन्हीं दिनों पंजाब के जलियांवाला बाग में हुई मासूम लोगों की हत्याओं की खबर उन्हें मिली। सेना के सख्त कानून के कारण इस भयानक घटना की खबर तक छापने की अनुमति नहीं दी गई। इस खबर से रवीन्द्रनाथ बेहद दुःखी हुए। उन्होंने एक चिट्ठी में उस समय लिखा, ''इस दु:ख के ताप से मेरी छाती जल रही है।'' उन्होंने इसका विरोध करने की ठानी। उन्होंने चितरंजन दास से कहा, ''एक विरोध सभा बुलाइए, मैं उसका सभापतित्व करूंगा।'' मगर चितरंजन दास राजी नहीं हुए। उन्होंने गांधी जी को चिट्ठी लिखी, ''आइए हम दोनों मिलकर कानून भंग करके पजाब में घुसें।'' गांधी जी भी इसके लिए तैयार नहीं हुए।

इस घटना का बोझ उनके दिल पर इस कदर बढ़ गया कि वे कई रात सो नहीं पाए। आखिरकार 19 मई 1919 को उन्होंने बड़े लार्ड चेम्सफोर्ड को चिट्ठी लिखकर जता दिया कि वे अब ''सर'' नहीं बने रहना चाहते। उन्होंने ''सर'' की उपाधि लौटा दी।

उनकी लिखी वह चिट्ठी पढ़ने लायक है। कवि के मन की वेदना, उनका सारा गुस्सा उस चिट्ठी में नजर आता है। ऐसी ही एक चिट्ठी में उन्होंने लिखा था, ''मेरे दुःख का सीने पर इतना ज्यादा बोझ है जिसे ढोना अब कठिन हो गया है, इसलिए इस बोझ पर इस उपाधि का भी वजन ढोना अब मेरे लिए संभव नहीं है।''

रवीन्द्रनाथ सपरिवार शिलांग गए। वहां से गुवाहाटी होकर रेलगाड़ी से सिलहट पहुंचे। वहां उनका बहुत स्वागत हुआ। वहीं पर पहली बार मणिपुरी नाच देखकर वे बहुत प्रभावित हुए। अगरतला से शांतिनिकेतन लौटकर उन्होंने एक मणिपुरी नृत्य के गुरू को बुलाया। तभी से शांतिनिकेतन में मणिपुरी नाच सिखाना शुरू हुआ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book