जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
उन्हें लखनऊ से भी
निमंत्रण मिला। वहां अखिल भारतीय
संगीत सम्मेलन हो रहा था। वहां पर उनके बड़े भाई द्विजेन्द्रनाथ के परलोक
सिधारने की खबर पाकर वे शांतिनिकेतन लौट आए। वहां पहुंचने के बाद उन्हें
ढाका से बुलावा आया। वे ढाका पहुंचे। ढाका विश्वविद्यालय में उन्होंने
''कला का दर्शन'' विषय पर भाषण दिया। वहां पर सात दिनों तक राजकीय अतिथि
रहकर वे मैमन सिंह और कुमिल्ला गए। वहां से अगरतला। वहां भी लोगों ने
उन्हें सम्मानित किया।
कलकत्ता लौटकर देश के
राजनीतिक हालात
देखकर कवि बहुत दुःखी हुए। तभी हिन्दू-मुसलमान के दंगे शुरू हो गए। यह सब
देख-सुनकर कवि ने खीझकर एक चिट्ठी में लिखा-''इस तरह के धर्म के अति मोह
और उसके भयावह रूप से नास्तिकता कहीं बेहतर है।'' ''धर्म मोह'' नामक कविता
में उन्होंने लिखा-
''धर्म
के वेश में मोह जिन्हें जकड़ता आकर
अंधे
होकर वे ही मारते और खुद भी जाते मर
नास्तिक
जन को भी भगवान का मिलता है वर
जो
धर्म के नाम पर करता नहीं आडम्बर।''
उन्होंने
शांतिनिकेतन में रहते हुए एक नाटक लिखा-''नटीर पूजा (नटी की पूजा)।'' वह
नाटक शांतिनिकेतन और कलकत्ता में खेला गया। पहली बार एक अच्छे परिवार की
लड़की को लोगों ने उसमें नाचते हुए देखा। उस जमाने में यह बड़े साहस की बात
थी। ''नटी की पूजा'' के गीतों के अलावा भी कवि ने अलग से काफी गीत लिखे।
वे गीत उनके हाथ की लिखावट में छपी किताब ''वैकाली'' में शामिल हैं। इसी
समय प्रमथ चौधुरी की लिखी किताब ''रायतेर कथा'' (रैयतों की कहानी) भी छपी।
रवीन्द्रनाथ ने इस किताब के बारे में लिखा- ''मेरा पैदाइशी पेशा जमींदारी
है, लेकिन मेरी रुचि का पेशा आसमानदारी है। इसीलिए जमींदारों की तरह जमीन
पर कब्जा करके बैठे रहने की बात मेरा मन नहीं मानता। मुझे पता है, जमींदार
जमीन का जोंक होता है, वह पैरासाइट है, दूसरे पर निर्भर जीव है।''
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