जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
छह
12 मई 1920 को मुसोलिनी के बुलावे पर रवीन्द्रनाथ इटली रवाना हुए। उनके साथ रथीन्द्रनाथ, प्रतिभा देवी, प्रशांतचंद्र महलानवीस तथा उनकी पत्नी रानी थी। इस सफर को लेकर देश-विदेश में खूब बावेला मचा। फासिस्ट मुसोलिनी के देश में रवीन्द्रनाथ को बुलाने के पीछे जरूर कोई खराब मतलब होगा-इसी का चारों तरफ प्रचार होने लगा। रवीन्द्रनाथ के दोस्त रोम्यां रोलां भी इस बात से खुश नहीं थे। रवीन्द्रनाथ नेपल्स होते हुए रोम पहुंचे। वहां उनके ठहरने और घूमने-फिरने की भरपूर सुविधा थी। वे चौदह दिन रोम में रहे। एक दिन लोगों की नजर बचाकर रवीन्द्रनाथ से मिलने के लिए दार्शनिक वेनदोक्ते क्रोचे पहुंचे। उन्होंने रवीन्द्रनाथ को मुसोलिनी के असली इरादे की जानकारी दी।रोम से फ्लोरेन्स और तुरीन होते हुए स्विटरजरलैंड। वहां रोम्यां रोलां से भेंट हुई। उन्होंने रवीन्द्रनाथ को इटली के असली रूप के बारे में बताया। कवि की आंख खुल गई। उन्होंने एंड्रूज को लिखी अपनी चिट्ठी में इटली और मुसोलिनी के बारे में अपनी बदली हुई राय का जिक्र किया। वह चिट्ठी ''मैनचेस्टर गार्जियन'' पत्रिका में छपी। उसे पढ़कर मुसोलिनी के निकट के लोग रवीन्द्रनाथ से चिढ़कर गाली-गलौच करने लगे। अध्यापक तुच्ची ने विश्तभारती की नौकरी छोड़ दी। फार्मिका वहां से पहले हो चले गए थे।
ज्यूरिख, वियेना और पेरिस होते हुए रवीन्द्रनाथ इंग्लैंड पहुंचे। वहां पहले एलमहर्स्ट के यहां फिर डेवेनशायर के डर्टिन्टन हॉल में गए। उस बार लदन में रहने के दौरान दुनिया के जाने माने मूर्तिकार एपस्टाइन से परिचय हुआ। उन्होंने कवि की एक मूर्ति बनाई। इसके बाद वे लंदन से नार्वे की राजधानी ओस्लो पहुंचे। वहां पर भाषणों और पार्टियों का सिलसिला चलता ही रहा। इसके बाद रवीन्द्रनाथ स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम तथा डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन गए।
वहां से जर्मनी के हैम्बुर्ग में पहुंचे। वहां उनके भाषण का विषय था-''संस्कृति तथा उन्नति।'' वे हैम्बुर्ग से बर्लिन गए। एक दिन जर्मनी के राष्ट्रपति हिंडेनबुर्ग के बुलावे पर रवीन्द्रनाथ उनसे मिलने गए। उनकी एक दिन अलवर्ट आइंस्टीन से भी भेंट हुई। फिर बर्लिन से म्यूनिख गए। नूरेनबर्ग, कोलोन, डुसेलडर्फ होकर बर्लिन लौटे।
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