जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
इसी दौरान उन्होंने ढेर
सारे गीत
भी लिखे। ड्रेसड्रेन में पहुंचने के बाद एक दिन वहां जर्मन भाषा में उनका
लिखा नाटक ''डाकघर'' खेला गया। वहां से वे चेकोस्लोवाकिया की राजधानी
प्राग पहुंचे। प्राग से वियेना, इसके बाद हंगरी के बुडापेस्ट में
रवीन्द्रनाथ गए। वहां पर बालातोन झील के उस पार उन्होंने एक पेड़ लगाया।
इतने
ज्यादा सफर के कारण रवीन्द्रनाथ बीमार पड़ गए। इसके बावजूद वे युगोस्लाविया
गए। बेलग्रेड में उनकी जबर्दस्त आवभगत हुई। बेलग्रेड से वे बुलगारिया
पहुंचे। वहां की राजधानी सोफिया में भी उनका सम्मान हुआ। सोफिया से
रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट गए। हर जगह उनका स्वागत हुआ। बुखारेस्ट से
इस्ताम्बूल, उसके बाद ग्रीस, जहां रवीन्द्रनाथ ने एथेन्स की पुरानी यादगार
इमारतों को देखा। आखिरकार वे जहाज से भारत रवाना हुए। विदेश सफर करते हुए
रवीन्द्रनाथ बेहद थक चुके थे। रवीन्द्रनाथ, मिस्र के एलेकजेन्ड्रिया भी
गए, वहां से कैरो। अजायबघर में रखी ममी और दूसरी शिल्पकलाओं को देखकर
उन्होंने प्रभावित होकर लिखा-''इन यादगारों को देखकर मैं मन ही मन सोचता
हूं कि यूं तो मनुष्य बाहर से साढ़े तीन हाथ का ही होता है मगर अंदर से वह
कितना बड़ा होता है।'' रवीन्द्रनाथ की भेंट मिस्र के बादशाह फहद से हुई।
फहद ने विश्वभारती को बड़ी संख्या में अरबी किताबें उपहार में दी।
रवीन्द्रनाथ
को भारत लौटते ही, दिल्ली में स्वामी श्रद्धानंद के परलोक सिधारने का
दुःखद समाचार मिला। रवीन्द्रनाथ ने देश के लोगों से धीरज रखकर समस्या का
कोई हल ढूंढ़ने के लिए कहा। उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद पर शांतिनिकेतन
में एक भाषण भी दिया।
कवि के अंदर धीरे-धीरे
राजनीति का जोश कम
होता जा रहा था। रवीन्द्रनाथ फिर से अपने लेखन कार्य में पूरी तौर से लग
गए। ''नटीर पूजा'' नाटक खेले जाने के बाद रवीन्द्रनाथ ने ''नटराज
ऋतुरंगशाला'' नाटक लिखा। इसके साथ ''वृक्ष वंदना।'' पेड़ और लताओं पर लिखी
उनकी कविताएं बाद में ''वनवाणी'' नामक किताब में शामिल हुई। उन्हीं दिनों
रवीन्द्रनाथ ने नृत्य पर आधारित गीत लिखे। कवि की रचनाओं में जैसे नटराज
की कला नजर आने लगी। तभी तो वे यह बात लिख सके-''इस दुनिया के कण-कण में
नृत्य की छाया, झिलमिलाती, नजर आती।''
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