जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
सन् 1885 में दशहरे की
छुट्टियों में
रवीन्द्रनाथ अपने संझले भाई सत्येन्द्रनाथ के पास शोलापुर गए, जहां वे
नौकरी करते थे। सत्येन्द्रनाथ वहां के जज थे। वहां पर रहकर रवीन्द्रनाथ ने
कई बहुत अच्छे लेख लिखे। ''राजा और रानी'' नामक नाटक लिखा। इन्हीं दिनों
कलकत्ता में राजनीतिक गतिविधियां जोरों पर थीं। नेशनल कांफ्रेंस के दूसरे
अधिवेशन की तैयारी भी चल रही थी। सन् 1885 में राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म
हुआ।
इस बीच कवि रवीन्द्रनाथ,
जमींदार रवीन्द्रनाथ बन गए। सन्
189। में देवेन्द्रनाथ ने अपने सबसे छोटे बेटे पर जमींदारी की जिम्मेदारी
सौंपकर उन्हें शिलाईदह भेजा। पूर्वी बंगाल के बिराहिमपुर, कालीग्राम और
साजादपुर तथा उड़ीसा के कुछ परगने ठाकुर जमींदारी में शामिल थे उनकी
देखभाल का भार अपने कंधों पर लेकर रवीन्द्रनाथ एक नये काम में जुट गये।
जमींदारी संभालने में रवीन्द्रनाथ ने अपनी प्रतिभा दिखाई। इसी दौरान
उन्होंने बंगाल के गावों को ठीक से पहचाना। उन्होंने गांवों के विकास के
लिए नए वैज्ञानिक तरीकों से खेती करके पैदावार बढ़ाई। उनके लिखे गीत,
कविता, कहानी, लेख वगैरह भी छपते रहे। गांव के लोगों से मिलने-जुलने से
उनकी समझ और बढ़ी। उसका परिचय उस दौर की लिखी रचनाओं से मिलता है। खासकर
उनकी लिखी कहानियों और 'छिन्नपत्र' नामक पुस्तक से रवीन्द्रनाथ ने 15 मई
1890 को भारत सरकार की कुछ नीतियों का विरोध करते
हुए ''मंत्री
अभिषेक'' नाम से एक राजनीतिक लेख पढ़ा। उसमें उन्होंने लिखा था, ''सरकार
द्वारा मंत्री नियुक्त करने की बजाय आम जनता द्वारा मंत्री का चुनाव करना
ज्यादा उचित है।''
इसी बीच जोड़ासांको वाले
घर से ''साधना'' नामक
एक मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रकाशित होने लगी। इस पत्रिका में कहानी,
लेख, पुस्तक समालोचना आदि के रूप में सबसे ज्यादा रवीन्द्रनाथ की ही
रचनाएं रहतीं। सन् 1892 में भारतीय संगीत समाज का काम शुरू हुआ। इस समाज
में नाटक खेलने के लिए रवीन्द्रनाथ ने ''गोड़ाय गलद'' (शुरू में ही बाधा)
नामक नाटक लिखा। बीच-बीच में समय निकालकर जमींदारी का काम भी देखते रहते।
राजशाही में उनकी भेंट उनके दोस्त लोकेन पालित से हुई। उनसे पहला परिचय
विलायत में हुआ था। उनका साथ कवि को अच्छा लगा था। अपने एक और साथी नाटोर
के महाराजा जगदिनेन्द्रनाथ से भेंट करने के लिए वे राजशाही से नाटोर भी
गए।
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