जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
रवीन्द्रनाथ अपने परिवार
के साथ शोलापुर गए थे। अपने परिवार
को मंझले भैया के पास छोड़कर वहां से वे अकेले लौट आए। बाद में जाकर
मृणालिनी देवी तथा बच्चों को जोड़ासांको वापस ले आए। कुछ दिन वहां रहकर वे
जमींदारी के काम से उड़ीसा चले गए। साथ में उनके भतीजे बलेन्द्रनाथ भी थे।
वे उस समय साहित्य में अपने चाचा की शागिर्दी कर रहे थे। कटक पहुंचकर वे
बिहारीलाल गुप्त के यहां ठहरे। कटक रहने के दौरान एक भोजसभा में वहां के
रेवेन्स कालेज के अंग्रेज प्रधानाध्यापक से उनकी भेंट हुई। खाने की मेज पर
बैठकर उन्होंने भारत के बारे में कुछ ऐसी बातें कहीं, जिससे रवीन्द्रनाथ
बहुत खीझे और नाराज भी हुए। उन्होंने इस घटना का जिक्र करते हुए बाद में
लिखा था - ''किसी बंगाली के बुलावे पर उनके यहां जाकर कुछ लोग भारत की
बुराई करने में संकोच नहीं करते, इसी से पता चलता है कि वे हमें किन नजरों
से देखते हैं। इस घटना की याद में उन्होंने कुछ दिनों के बाद ''अपमानेर
प्रतिकार'' (अपमान का बदला) नामक एक लेख भी लिखा।
कलकत्ता लौटकर
वहां से राजनैतिक माहौल ने उन्हें अपनी लपेट में ले लिया। उन्होंने
''अंग्रेज और भारतवासी'' नामक एक लंबा लेख लिखा। विडन स्ट्रीट की चेतना
लाइब्रेरी में उसे उन्होंने पढ़ा। सभापति थे बंकिमचंद्र। बंकिमचंद्र से
रवीन्द्रनाथ की वही आखिरी भेंट थी। उसके कुछ ही दिन बाद बंकिमचंद्र की
मृत्यु हो गई। उन दिनों रवीन्द्रनाथ ने कविताओं के अलावा भी कई लेख लिखे,
जो मशहूर हुए। जैसे कि ''इंग्रेजेर आतंक'' (अंग्रेजों का आतंक),
''सुविचारेर अधिकार'' (न्याय का अधिकार), ''राजा और प्रजा'', ''राजनीतिक
द्विधा'' (राजनीतिक की दुविधा) आदि। इन सभी लेखों में देश प्रेम की
जबर्दस्त भावना थी। उन्होंने एक जगह लिखा था- ''यूरोप की नीति सिर्फ यूरोप
के लिए ठीक है, भारत के लोग उनसे बिल्कुल अलग हैं इसलिए उनकी सभ्य नीति
यहां के लिए कतई उपयोगी नहीं है।'' रवीन्द्रनाथ की राय में ''अंग्रेजों से
दूरी बनाए रखकर भारतीयों को अपनी जिम्मेदारियों को निभाते रहना चाहिए।
इससे धीरे-धीरे दोनों के बीच की आपसी कटुता भी कम होगी।''
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