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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841
आईएसबीएन :9781613015599

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


शांतिनिकेतन में सुख-चैन से उनके दिन बीत रहे थे। तभी भरतपुर के महाराजा किसन सिंह की उन्हें चिट्ठी मिली। वहां होने वाले हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सभापति बनने के लिए उनसे निवेदन किया गया था। रवीन्द्रनाथ राजी हो गए। वहां उन्होंने अपना भाषण दिया। वहां से जयपुर होते हुए अहमदाबाद पहुंचे। पहले की तरह इस बार भी उद्योगपति अम्बालाल साराभाई के यहां ठहरे। वहां से आगरा होते हुए वे वापस शांतिनिकेतन आए। फिर कलकत्ता गए। उसके बाद शिलांग। वहां एक नया उपन्यास लिखना शुरू किया। पहले उसका नाम ''तिन पुरुष'' था, बाद में जिसका नाम बदलकर ''योगायोग'' (संयोग) रखा गया।

विदेश से उन्हें एक बार फिर बुलावा आया। इस बार पश्चिम के देशों से नहीं, पूरब के देशों से। इंडोनेशिया के प्रति उनका पुराना लगाव था। इस सफर में उनके साथ सुनीतिकुमार चटर्जी, सुरेन्द्रनाथ कर, वीरेन्द्रकृष्ण देववर्मा एवं ओलंदाज संगीत के जानकार आर्नार्ल्ड, बाके भी सपत्नीक गए। वे लोग जहाज से पहले सिंगापुर, वहां से मलयेशिया पहुंचे। वहां से जावा और बालीद्वीप। कवि को इंडोनेशिया का नृत्य बहुत अच्छा लगा। वह नृत्य रामायण तथा महाभारत पर आधारित होता है। वे बालीद्वीप में कुछ दिन रहे। जकार्ता शहर से वे बोरोवुटूर के विशाल मंदिर देखने गए। कुछ दिन मजे से बिताने के बाद वे थाइलैंड पहुंचे। बैंकाक के राज परिवार की ओर से उनकी बड़ी आवभगत हुई।

इंडोनेशिया छोड़ने के बाद जहाज में बैठे-बैठे उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता ''सागरिका'' लिखीं। उसमें प्राचीन भारत के साथ प्राचीन जावा-बाली के संबंधों की बात रूपक में कही गई है, साथ ही उस समय के कमजोर भारत के प्रतिनिधि के रूप में एक कवि के वहां जाने की बात भी बहुत सुंदर रूप से उसमें लिखी है। इस बार इंडोनेशिया में रवीन्द्रनाथ के साथ गुपचुप मिलने के लिए सुकर्ण भी गए थे, जो बाद में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति बने। कवि के जावा सफर का एक और फल इस देश को बाटिक कला शैली के रूप में मिला। इंडोनेशिया से वह कला पहली बार शांतिनिकेतन में आई, जहां से वह पूरे देश में लोकप्रिय हुई।

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