जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
उन्हें विलायत जाने के
लिए फिर बुलावा आया।
आक्सफोर्ड से ''हिबर्ट भाषण'' देने के लिए उन्हें बुलाया गया था। वहां
जाने से पहले वे मद्रास गए, फिर पांडिचेरी। वहां श्री अरविंद से भेंट हुई।
मगर उन्होंने कोलम्बो पहुंचकर विलायत जाने का इरादा बदल दिया। उनकी तबीयत
ठीक नहीं थी। वे उपाचार्य ब्रजेन्द्रनाथ शील के अतिथि बनकर मैसूर चले गए।
वहीं पर ''शेपेर कविता'' (अंत की कविता) नामक एक उपन्यास पूरा किया।
मद्रास, श्रीलंका और मैसूर में दो महीने बिताकर वे शांतिनिकेतन लौट आए।
कलकत्ता
में उन दिनों रवीन्द्र साहित्य पर बहस चल रही थी। ''कल्लोल'' और
''कालिकलम'' नामक दो मासिक पत्रिकाओं में देहवादी रचनाएं छप रही थीं।
उन्हीं में रवीन्द्रनाथ ने ''साहित्य धर्म'' नाम से एक लेख लिखकर चिरंतन
रस की वकालत की। जोड़ासांको के निवास में इस विषय पर एक सभा में खुलकर बहस
हुई। अपूर्व कुमार चंद और प्रशान्त महलानवीस उस सभा के आयोजक थे। वहां
दोनों ही विचारधारा के लेखक मौजूद थे। रवीन्द्रनाथ ने कहा, ''जिस समालोचना
में शांति की बात नहीं होती, जो सिर्फ चोट पहुंचाने का काम करती है,
जिसमें सिर्फ दोष ढूंढ़ने के लिए ही सारी ताकत लगाई जाती है, ऐसी समालोचना
को मैं ठीक नहीं समझता।''
शांतिनिकेतन लौटकर कवि
फिर आश्रम गुरू
बन गए। उनका मन अब शांत था। वहां पर उन्होंने 14 जुलाई 1928 को बहुत
धूमधाम से पेड़ लगाने की शुरूआत की। धरती को हरा-भरा बनाए रखने की यह उनकी
कोशिश थी। जलसे की मूल भावना पेड़ों की वंदना थी। इसी के साथ श्रीनिकेतन
में भी ''हलकर्षण'' यानी हल चलाने के जलसे की शुरूआत हुई। रवीन्द्रनाथ ने
खुद अपने हाथों से हल चलाया। रवीन्द्रनाथ के ''वृक्षारोपण उत्सव'' को
देखकर बाद में पूरे मारत में भी ''वन महोत्सव'' मनाया जाने लगा।
''वृक्षारोपण उत्सव'' में एक मन को लुभाने वाला जुलूस भी निकला, जिसमें
लड़कियां नाचते-गाते चल रही थीं। इंडोनेशिया के बालीद्वीप में उत्सव के
मौके पर रवीन्द्रनाथ वहां की लड़कियों को इस तरह जुलूस में नाचते-गाते
देखकर प्रभावित हुए थे। उन्होंने शांतिनिकेतन में भी यह सिलसिला शुरू
किया।
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