जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
वे कलकत्ता लौट आए। उन
दिनों उन पर चित्र बनाने का नशा चढ़
चुका था। समय पाते ही खूब चित्र बनाते। उस समय की एक चिट्ठी में उन्होंने
लिखा था-''रेखाओं के मायाजाल में मेरा मन रम गया है।'' इसी समय ''राजा ओ
रानी'' नाटक को नया रूप देकर उसका नाम बदलकर ''तपती'' रखा। कलकत्ता में वह
खेला भी गया। उस नाटक में राजा विक्रम वह खुद बने। ''तपती'' नाटक खेले
जाने की तैयारियों के दौरान ही 63 दिनों की भूख हड़ताल के बाद लाहौर जेल
में क्रांतिकारी जतीन दास की मौत की खबर उन्हें मिली। नाटक की तैयारी
अधूरी छोड़कर रवीन्द्रनाथ ने बहुत नाराज होकर लिखा-'ऐसा क्रोध मुझे दो,
जला दे सारी नीचताओं को। मुझे शक्ति दो हे भैरव।'
बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ की इच्छा पर कवि फिर से अहमदाबाद गए। अम्बालाल साराभाई के यहां ही वे ठहरे। वहां से बड़ौदा गए। वहां वे राज अतिथि के रूप में रहे। बड़े आनंद से कई दिन बिताने के बाद वे कलकत्ता लौटे। कलकत्ता से सन् 1930 में एक बार फिर यूरोप सफर पर निकले। उन्हें आक्सफोर्ड में ''हबर्ट भाषण'' देना था। इसके अलावा वहां वे अपने चित्रों की नुमाइश भी करना चाहते थे।
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