जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
पुणे की एक बड़ी जनसभा
में रवीन्द्रनाथ ने अपना
लिखा हुआ भाषण पढ़ा। उन्होंने कहा, ''देश के लोगों को छुआछूत मिटाना होगा।
हिन्दू और मुसलमान अगर मिलकर देश सेवा के लिए अपने को न्योछावर न करें तो
स्वराज हासिल करना कठिन हो जाएगा।''
यहां यह बात गौर करने
लायक
है कि गांधी जी के अनशन के साथ ही शांतिनिकेतन में भी काफी लोगों ने उपवास
रखा था। रवीन्द्रनाथ ने इस अनशन व्रत के बारे में कहा था-''देशहित में
गांधी जी जिस अहिंसा नीति की अब तक वकालत करते आए थे, आज वे उसी नीति के
पालन के लिए अपनी जान भी देने को तैयार हैं। मुझे ऐसा नहीं लगता कि यह बात
किसी की समझ में नहीं आएगी।''
पुणे से रवीन्द्रनाथ
शांतिनिकेतन
लौटे। इस बार उन्होंने एक लंबी कहानी लिखी-''दो बहनें''। उन्हें
प्रफुल्लचन्द्र राय के सत्तरवें जन्म दिवस के समारोह में भाग लेने कलकत्ता
जाना पड़ा। उस समारोह के वे सभापति बने। कलकत्ता से वे बरानगर
प्रशांतचंद्र महलानवीस के घर गए, जहां उनसे मिलने मदनमोहन मालवीय आए थे।
उन्होंने रवीन्द्रनाथ से कहा, ''भारत में नई शासन व्यवस्था शुरू होने को
लेकर भारत के खिलाफ विदेशों में काफी कुछ ऊल-जलूल कहा जा रहा है। भारतीयों
की ज्यादातर मांगें मानी जाने लायक नहीं हैं। अंग्रेजों के दलालों का कहना
है कि भारतीय अभी इसके लायक नहीं हैं। रवीन्द्रनाथ का कहना था कि इस
कुप्रचार का खंडन करने के लिए विदेशों के प्रमुख शहरों में भारत के बारे
में सही जानकारियां तथा सूचनाएं देने के लिए दफ्तर खोलने पड़ेंगे। छिटपुट
लेख लिखकर इसे रोकना संभव नहीं है।
इसके बाद रवीन्द्रनाथ
दार्जिलिंग में कुछ दिन रहकर शांतिनिकेतन लौटे और वहां अपने काम में डूब
गए। उसके पहले 19 दिसम्बर 1932 को सर डैनियल हैमिल्टन के बुलावे पर मोटर
बोट से सुंदर वन के गोसावा में ग्राम कल्याण केन्द्र देखने के लिए गए।
वहां का कामकाज, खासकर सामुदायिक नीति का प्रसार देखकर, कवि को बहुत खुशी
हुई।
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