जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
अगले साल यानी सन् 1933
की जनवरी में रवीन्द्रनाथ
शांतिनिकेतन लौट आए। वे उस समय एक नया नाटक लिख रहे थे। वे अगले कुछ साल
अपनी लिखी पुरानी कहानियों तथा नाटकों में काट छांट करके उन्हें नया रूप
देने में लगे रहें। शांतिनिकेतन में इधर नृत्य के प्रति लोगों की रूचि
बढ़ी थी। वहां नृत्य में माहिर काफी लोग थे।
शांतिनिकेतन में नाच
सिखाने के लिए मणिपुर और केरल से कई अच्छे गुरू आए थे। सन् तीस के दशक में
रवीन्द्रनाथ ने काफी कुछ लिखा और काम किया। पढ़े-लिखे लोगों का ध्यान
उन्होंने सत्य के प्रति खींचा। उन्होंने ''शापमोचन'', ''चित्रांगदा'',
''चंडालिका'', ''श्यामा'' जैसे कई नृत्य नाटक तथा ''ताक्षर देश'' (ताश का
देश) जैसा असाधारण नृत्य नाटक लिखा। नृत्य-लक्ष्मी को इसके पहले किसी और
भारतीय ने इतना सम्मान नहीं दिया था। अपने नृत्य नाटक की मंडली को लेकर
रवीन्द्रनाथ पूरा भारत और श्रीलंका घूम आए।
रवीन्द्रनाथ ''ताश का
देश'' नाटक लेकर मुंबई पहुंचे। इसी के साथ भाषणों और सम्मान का दौर भी
चलता रहा। वहां से वे आंध्र विश्वविद्यालय में भाषण देने वाल्टेयर गए,
भाषण का विषय था-''मनुष्य''। वाल्टेयर से निजाम के हैदराबाद में। वहां के
प्रधानमंत्री सर किशन प्रसाद ने उनसे वहां आने का आग्रह किया था।
विश्वभारती के इस्लामी विभाग को निजाम की मदद मिल रही थी।
डेढ़
महीने पश्चिम भारत और मध्य भारत में बिताने के बाद रवीन्द्रनाथ कलकत्ता
लौटे। राममोहन राय की सौवीं जयंती की सभा में उन्होंने 'भारत पथिक
राममोहन' नामक भाषण दिया। शांतिनिकेतन पहुंचने के बाद वहां उनसे मिलने
सरोजिनी नायडू आईं। जवाहरलाल नेहरू भी अपनी पत्नी कमला नेहरू के साथ
पहुंचे। उनकी इकलौती बेटी इंदिरा प्रियदर्शनी उन दिनों वहां पढ़ती थीं।
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