जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
14 अप्रैल 1937 को
चीन भवन का उद्घाटन शांतिनिकेतन में हुआ। इस समारोह में रवीन्द्रनाथ ने
''चीन और भारत'' विषय पर अपना भाषण पढ़ा। रवीन्द्रनाथ ने उन्हीं दिनों
सितारों पर बांग्ला में एक किताब लिखी, जिसका नाम रखा -''विश्व परिचय।''
इसके बाद वे आराम करने के लिए अल्मोड़ा चले गए।
वहां से लौटकर
उन्होंने अपनी जमींदारी राजशाही जिले के पतिसर में जाने का इरादा किया।
वहां के लोग उनके आने से बहुत खुश हुए। कवि के साथ, उनके सचिव सुधाकांत
राय चौधुरी ने इस सफर के बारे में लिखा है-''ऐसे बुरे साम्प्रदायिक माहौल
के पतिसर में, जहां मुसलमानों की तादाद ज्यादा थी, उनके दिलों में
रवीन्द्रनाथ के लिए कितना आदर था, इसे बिना देखे नहीं समझा जा सकता।
जिन्होंने खुद नहीं देखा वे इसे महसूस नहीं कर सकते।''
रवीन्द्रनाथ
ने अपनी प्रजा से विदा लेते हुए कहा कि कितना अच्छा होता कि वे अपनी प्रजा
के ही बीच रहकर अपना जीवन बिताते। लेकिन उन्हें और भी कई कामों से अपना
जीवन दूसरी जगहों में दूसरों के अनुसार बिताना पड़ा है। अब बीमारी के कारण
वहां बसना संभव भी नहीं है। उनकी प्रजा, जिनमें मुसलमानों की संख्या
ज्यादा थी, ने आंसू भरी आंखों से नदी के किनारे तक आकर उन्हें विदा किया।
पतिसर
से लौटने के बाद कलकत्ता के टाउनहाल में एक और जनसभा के वे सभापति बनाए
गए। यह सभा अंडमान के राजनीतिक बंदियों के अनशन और हड़ताल के प्रति लोगों
की सहानुभूति जताने के लिए की गई थी। इसके अलावा बंगाल की मुसलिम लीग
सरकार की निर्दयी मानसिकता तथा उसके व्यवहार की निंदा भी करना था।
रवीन्द्रनाथ ने अंडमान के बंदियों को तार के जरिए समाचार भेजा कि ''सारा
बंगाल अनशन और हड़ताल कर रहे तुम सब की कुशलता के बारे में जानने के लिए
बेचैन हैं, पूरा देश तुम्हारे साथ है।'' 14 अगस्त 1937 को बंगाल में
''अंडमान दिवस'' मनाया गया। शांतिनिकेतन में भी एक सभा बुलाई गई। उसमें
रवीन्द्रनाथ ने अंग्रेजों की सजा की नीति में जो बर्बरता छिपी हुई थी,
उसका खुलासा किया। उन्होंने राजनीतिक बंदियों को दी जाने वाली सजा के गलत
इस्तेमाल की निंदा की।
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