जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
कुछ दिनों बाद वे इलाज के
लिए कलकत्ता
पहुंचे। वहां वे बरानगर में प्रशांतचंद्र महलानवीस के यहां ठहरे। उस वक्त
कलकत्ता में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सम्मेलन चल रहा था। वहां
बड़े-बड़े कांग्रेसी नेता आए हुए थे। रवीन्द्रनाथ की बीमारी की खबर पाकर
उनसे मिलने जवाहरलाल, सरोजिनी नायडू आचार्य कृपलानी जैसे नेता पहुंचे।
महात्मा गांधी भी उनसे मिलना चाहते थे। लेकिन उनके पास आते समय मोटर में
खुद उनकी तबीयत खराब होने से वे वापस
शरतचंद्र बोस के यहां लौट
गए, जहां वे ठहरे हुए थे। यह खबर पाकर रवीन्द्रनाथ अपनी बीमारी की परवाह
किए बिना बीमार गांधी जी को देखने उडबर्न पार्क में शरतचंद्र बोस के यहां
पहुंचे। गांधी जी सबसे ऊपर की मंजिल में ठहरे हुए थे। रवीन्द्रनाथ के लिए
उतनी सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाना संभव नहीं था। इसलिए जवाहरलाल नेहरू,
सुभाषचद्र बोस, शरतचंद्र बोस और महादेव देसाई उन्हें एक कुर्सी पर बिठाकर
खुद अपने कंधों पर वह कुर्सी उठाकर गांधी जी के पास ले गए। गांधी जी की एक
प्रार्थना सभा में भी उन दिनों रवीन्द्रनाथ ने हिस्सा लिया था।
प्रशांतचंद्र के घर, बरानगर गुप्त निवास में एक दिन सुभाषचंद्र बोस,
रवीन्द्रनाथ से मिलने पहुंचे थे। देश के मौजूदा राजनीतिक हालात पर दोनों
में काफी देर तक बातचीत हुई थी।
उन्हीं दिनों देश में
राष्ट्रीय
संगीत को लेकर बहस-मुबाहिसा जोरों पर था। एक गुट ''वंदेमातरम्'' गीत की
वकालत कर रहा था। लेकिन जवाहरलाल आदि कई नेताओं का कहना था कि वह पूरा गीत
भारत के हर जाति के लोगों के गले नहीं उतरेगा। रवीन्द्रनाथ ने जवाहरलाल
नेहरू को एक चिट्ठी में लिखा कि उस पूरे गीत को इस देश का राष्ट्रीय गीत
बनने में कठिनाई है। इस कारण रवीन्द्रनाथ को बंगाल के कई कट्टर
राष्ट्रवादी पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रमुख लोगों का गुस्सा झेलना पड़ा।
रवीन्द्रनाथ की राय मानकर, नवम्बर 1937 में बंकिमचंद्र के लिखे और
रवीन्द्रनाथ के सुरों में ढले उस गीत का पहला छंद, कांग्रेस अधिवेशन में
राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार कर लिया गया। रवीन्द्रनाथ के लिखे ''जन गण
मन'' गीत को आजाद भारत में काफी बहस के बाद राष्ट्रगीत का दर्जा मिला।
''वंदेमातरम्'' गीत के पहले छंद को भी राष्ट्रगीत के रूप में सम्मान दिया
गया। ''जन गण मन'' गीत के बारे में कुछ लोगों की शिकायत है कि वह ब्रिटिश
राज की वंदना है। ऐसे लोगों को प्रबोधचंद्र सेन की लिखी किताब ''भारत का
राष्ट्रीय गीत'' जरूर पढ़नी चाहिए। उसमें यह बात साबित की गई है कि यह गीत
किसी भी आदमी के लिए नहीं लिखा गया था। इसके बाद किसी प्रकार की बहस या
संदेह की गुंजाइश नहीं रह जाती।
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