व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
''मनुष्य अपने भाग्य का
निर्माता स्वयं है - इस सूक्ति वाक्य को कर्मठ व्यक्तियों ने पुरुषार्थ
द्वारा, असंभव को संभव सिद्ध करके संसार के सम्मुख एक सिद्ध मंत्र के रूप
में प्रस्तुत किया। जीवन में सफलता की आकांक्षा रखने वालों को चाहिए कि
सामयिक असफलता को चुनौती की भांति स्वीकार करें और अपनी सृजन शक्ति के बल
पर असफलता की पोशाक निराशा को पास न फटकने दें। कठिनाइयों से भय मानना
अंतर में छिपी कायरता का द्योतक है। कठिनाइयों को देखकर भयभीत होने के
स्थान पर उन्हें दूर करने के लिए जी-जान से जुट जाना होगा। इस प्रकार पूरे
उत्साह और साहस के साथ लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने पर सफलता की आशा की जा सकती
है। इसमें संदेह नहीं कि ऐसा अदम्य उत्साह और उद्योग की क्षमता प्रकट करने
वाले पुरुषार्थी के गले में जयमाला पड़ती ही है।
सफलता की सिद्धि ही
मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है। जो व्यक्ति अपने इस अधिकार की उपेक्षा
करके यथा-तथा जी लेने में ही संतोष मानते हैं, वे इस बहुमूल्य मानव-जीवन
का अवमूल्यन कर एक ऐसे सुअवसर को खो देते हैं, जिसका दोबारा मिल सकना
संदिग्ध है। अस्तु उठिए और आज से ही अपनी वांछित सफलता को वरण करने के लिए
उद्योग में जुट पड़िए।
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