व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
आजकल कपड़े पहनने का ढंग
कुछ विकृत होता जा रहा है। युवक-युवतियाँ इस फैशन की दौड़ में सबसे आगे
हैं। सिनेमा में काम करने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियाँ जिस ढंग के कपड़े
पहनते हैं, वे उसी ढंग के कपड़े बनवाकर पहनते हैं। कपड़े पहनने का अर्थ अपनी
लज्जा को ढकने की बजाय उघाड़ना हो गया है। अनुकरण बुरा नहीं, पर अंधानुकरण
तो बुरा होता ही है। आजकल फैशन के नाम पर जो नंगापन चला है, उससे समाज की
जो हानि हो रही है, उससे कोई अनभिज्ञ नहीं है। कसे-कसाए और शरीर के
उतारचढ़ाव को दिखाने वाले कपड़े दर्शकों के मन में विकार ही उत्पन्न नहीं
करते, वरन स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होते हैं। भड़कीले वस्त्रों से
आँखों पर भी बुरा असर पड़ता है, विशेषकर लाल रंग से। कपड़े हलके रंग के सभ्य
और शालीन होने चाहिए। बाल बुद्धि के लोग शारीरिक सौंदर्य और रूप का आकर्षण
बढ़ाने के लिए तरह-तरह से वेश-विन्यास और रूप-सज्जा किया करते हैं। संभव
है, इससे उन्हें कुछ क्षणिक सफलता मिलती हो, किंतु इस प्रकार भड़कीला
वेश-विन्यास और बाहरी चमक बढ़ाने से मनुष्य के चरित्र का पतन ही हुआ है।
विचित्र प्रकार की वेशभूषा, विदेशियों की नकल अच्छे व्यक्तित्व का प्रतीक
नहीं हो सकती। प्रत्येक देश, काल और परिस्थिति के अनुसार जहाँ संस्कृति,
रीतिरिवाज और सामाजिक आचार-संहिता में एकता होती है, उसी में सीमित रहने
में हमारा बड़प्पन, सादगी, शालीनता तथा सांस्कृतिक गौरव माना जा सकता है।
बालों से मनुष्य का
व्यक्तित्व समझ में आता है। मनुष्य की उजड्डता, ओछापन और चारित्रिक हीनता
की झलक भी बालों से मिलती है। छोटे कटाए हुए बाल मनुष्य की योग्यता प्रकट
करते हैं। सुव्यवस्थित ढंग से रखे हुए बाल व्यक्त करते हैं कि व्यक्ति का
स्वभाव, आचरण सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा कुछ अधिक सुंदर होना चाहिए,
किंतु बड़े-बड़े, अस्त-व्यस्त और बिखरे हुए बालों से मनुष्य का ओछापन जाहिर
होता है।
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