व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
तडक-भड़क युक्त पश्चिमी
लिवास यह तो बताता है कि व्यक्ति सभ्य है. पर वह सुसंस्कृत ही होगा, ऐसा
दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। प्रारंभ से ही हमारे देश में चरित्र,
चिंतन, व्यवहार को व्यक्तित्व के मूल्यांकन का आधार माना गया, जो सही था,
किंतु समय के साथ-साथ मूल्यांकन की कसौटी बदली और अब सभ्य-असभ्य में विभेद
का एक मोटा आधार पोशाक को माना जाने लगा है।
वेशभूषा की विकृति का
स्त्रियों के जीवन में प्रवेश एक चिंतनीय विषय है। आज सभ्य और आधुनिक
कहलाने वाली स्त्रियाँ अपने शरीर के वस्त्र सिकोड़ती और तंग करती जा रही
हैं। जिसका बुरा प्रभाव न सिर्फ उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है, वरन् समस्त
समाज इस दुष्प्रभाव से संक्रमित होता है। स्त्रियों का आधुनिक पहनावा इतना
फूहड़ और भड़कीला हो रहा है कि हर शरमदार की आँखें नीची हो जाती हैं।
दुराचार को प्रोत्साहन देने में सिनेमा, नाच, अश्लील गाने जितने सहायक हो
रहे हैं, वस्त्र सज्जा उससे कहीं अधिक ही है। हमारी बच्चियाँ अब उन
वस्त्रों की ओर अधिक आकर्षित होती हैं, जो विचित्र प्रकार के रंग-बिरंगे
तथा आधे छोटे होते हैं। स्त्रियों के वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनसे उनका
अधिकांश शरीर ढका रहे, किंतु वस्तुस्थिति इससे सर्वथा विपरीत है।
स्त्रियों की भारतीय
वेशभूषा को अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त है। अत: यह नहीं कहा जा सकता
कि उनकी पोशाक किसी देश की महिलाओं से निकृष्ट है। आज जहाँ साड़ी और पूरी
बाँह के ब्लाउज का प्रचलन दूसरे देशों में बढ़ रहा है, वहाँ यह सबसे अधिक
आवश्यक है कि अपनी परंपराओं का अनुशीलन पहले अपने घर में ही हो। हमारी
बहन-बेटियों को इस बात पर अधिक ध्यान देना चाहिए और वस्त्रों की सादगी
अपनाने का प्रयत्न करना चाहिए। यह संयम उन बालिकाओं को अधिक अपनाने की
आवश्यकता है जो इस समय शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ रही हैं, क्योंकि महिलाओं
के निर्माण की भावी बागडोर उन्हीं के हाथों आने वाली है।
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