व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
इसी प्रकार लोकमान्य तिलक
चोटी के विद्वान और भारत के सर्वमान्य नेता होते हुए भी सदा महाराष्ट्रीय
पोशाक धोती, पगड़ी आदि पहनने थे। विलायत जाने के अवसर पर भी उन्होंने इस
नियम को नहीं छोड़ा। इसी प्रकार मदन मोहन मालवीय जी भारतीय पोशाक के परम
भक्त थे। वे सदा बड़ी-बड़ी सरकारी काउंसिल और कमेटियों में नियत वस्त्रों
में ही जाते थे। गाँधीजी की विशेषता तो जगत प्रसिद्ध है। उन्होंने भारतीय
आदर्श का पालन करने के लिए लंगोटी और ओढ़ने के एक वस्त्र के अतिरिक्त सब
कपड़ों का त्यागकर दिया था और विलायत में ब्रिटिश सम्राट के महल में
निमंत्रित किए जाने पर भी उसी वेश में वहाँ गए। बादशाही महलों में पूरी
पोशाक में ही जाने का नियम है और खुले पाँव रखकर वहाँ किसी भी व्यक्ति के
प्रवेश करने का निषेध है, पर गाँधीजी के लिए इस नियम को एक विशेष आज्ञा
द्वारा हटा दिया गया और वे लंगोटी पहनकर ही सम्राट से मिले।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा
है कि जब तक समाज आधुनिकता के संदर्भ में वेश-विन्यास को महत्त्व देता
रहेगा, तब तक वह न तो सही अर्थों में आधुनिक बन पाएगा, न सभ्य कहलाने का
अधिकारी होगा। हम प्रगतिशील हैं, इसका मापदंड समय के हिसाब से व्यक्तित्व
में आई जागरूकता और सुसंस्कारिता होनी चाहिए न कि फैशन के नाम पर चलने
वाले चित्र-विचित्र लिवासों का प्रदर्शन। यदि प्रगतिशीलता का प्रतीक अंग
प्रदर्शन करने वाले छोटे और तंग वस्त्रों को मान लिया जाए तो फिर यह कहना
अत्युक्तिपूर्ण न होगा कि हम प्रतिगामिता के उस आदिम युग की ओर खिसकते चले
जा रहे हैं, जहाँ से सर्वथा वस्त्रहीन स्थिति में मनुष्य का विकास हुआ था।
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