व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
आज की दुनिया में जहाँ हर
चीज नकली होती जा रही है, मित्र भी नकली होने लगे हैं। इसलिए मित्रता
स्थापित करने में लोगों को आवेगपूर्ण भावुकता से काम नहीं लेना चाहिए।
जहाँ तक हो कम-से-कम मित्र बनाएँ। उन्हें अच्छी प्रकार से समझ- परख लें।
मित्र बनाने में एक सीमा से ज्यादा उदारता बरतना, अपने चारों ओर छद्मवेश
में छिपे हुए शोषकों तथा शत्रुओं को इकट्ठा करना है।
अनेक चालाक लोग अपना मतलब
बनाने के लिए संपन्न, सुशील. भावुक तथा उदारमना व्यक्तियों के मित्र बन
जाया करते हैं। अपना वक्त काटने तथा मनोरंजन करने के लिए उनके पास जा
पहुँचते हैं। ऐसे लोग भी होते हैं, जो मित्र बनकर निर्व्यसनी व्यक्तियों
को व्यसनी बना डालते हैं और इस प्रकार भोले भावुक व्यक्तियों को न जाने
कितनी चारित्रिक तथा आर्थिक हानि पहुँचाया करते हैं। जीवन में मित्रों का
होना अनिवार्यता है, किंतु इससे भी बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि किसी से
मित्रता स्थापित करने में अधिक-से-अधिक सावधानी तथा सतर्कता रखी जाए।
शत्रु की घात एक बार विफल हो सकती है, किंतु आस्तीन के साँप बने मित्र की
घात कभी विफल नहीं होती। इस पवित्र तथा हार्दिक संबंध के लिए वे ही
व्यक्ति उपयुक्त माने जा सकते हैं, जो स्वभावत: सज्जन हों।
युवको! हमें अपने को भी
इसी स्तर का बनाना चाहिए कि जो हमसे मित्रता करे, उसे अपने सौभाग्य की
सराहना करनी पड़े। सज्जनता और शालीनता ही सच्ची मित्रता का प्रयोजन पूरा
करती है। इसलिए मैत्री का आनंद एवं लाभ लेने अथवा देने वाले व्यक्ति में
इन श्रेष्ठताओं का होना अनिवार्य रूप से आवश्यक है।
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