व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
प्रेसीडेंट लिंकन के
मित्र ने कहा- 'आप काफी वृद्ध हो गए हैं, अब काम के घंटे कुछ कम कर देने
चाहिए।' लिंकन हँसे और बोले- 'श्रीमान जी! इस परिपक्व अवस्था से बढ़िया काम
करने का और कौन-सा समय होगा?' यह कहकर उन्होंने अपने सेक्रेटरी से कहकर
काम के घंटों में एक घंटे की और वृद्धि कर दी।
समय के प्रतिफल का सच्चा
लाभ उन्हें मिलता है, जो अपनी दिनचर्या बना लेते हैं और नियमित रूप से
निरंतर उसी क्रम पर आरूढ़ रहने का संकल्प लेकर चलते हैं। एक दिन एक सेर घी
खाएँ और एक महीने तक जरा भी न खाएँ, एक दिन सौ दंड- बैठक करें और बीस दिन
तक व्यायाम का नाम भी न लें, तो उस ज्वार-भाटे जैसे उत्साह के उठने व ठंढे
होने से क्या परिणाम निकलेगा? नियत समय पर काम करने से अंतर्मन को उस समय
वही काम करने की आदत भी पड़ जाती है और इच्छा भी होती है। चाय, सिगरेट आदि
नशे को लोग नियमित रूप से करते हैं। उन्हें नियत समय पर उसकी तलब उठती है
और न मिलने पर बेचैनी होती है। इसी प्रकार नियत समय पर कुछ काम करने का
अभ्यास डाल लिया गया है तो उस समय पर वैसा करने की इच्छा होगी, मन लगेगा
और काम ठीक तरह पूरा होगा। मंद चाल से चलने वाले कछुए ने तेज उछलने वाले
किंतु क्षणिक उत्साही खरगोश से बाजी जीत ली थी। यह कहानी नियमित और निरंतर
काम करने वालों पर अक्षरश: लागू होती है। मंदबुद्धि और स्वल्प साधनों वाले
कालिदास सरीखे लोगों ने एक कार्य में दत्तचित्त होकर नियमित रूप से निरंतर
काम करते रहने का क्रम बनाकर उच्चकोटि का विद्वान और कवि बनने में सफलता
पाई। इस तरह की सफलता कोई भी प्राप्त कर सकता है। उसमें कोई जादू-चमत्कार
नहीं, केवल व्यवस्थित और नियमित रूप से मनोयोगपूर्वक क्रमबद्ध काम करने का
प्रतिफल था। यह मार्ग कोई भी अपना सकता है और उन्नति के शिखर तक पहुँच
सकता है।
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