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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
5. हिंदी तथा अन्य आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाएँ
 
      आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ, जिसका प्रचलन एवं
      प्रयोग 500 से 1000 ई. के बीच हुआ करता था। देश में उस समय अपभ्रंश के कई रूप
      प्रचलित थे (जैसे शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्री) इन्हीं से विभिन्न भारतीय
      भाषाओं की धाराएँ निकलती हैं। अपभ्रंश स्वयं पालि-प्राकृत से और पालि-प्राकृत
      संस्कृत से विकसित हुई हैं।
      
      आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाओँ में प्रमुख हैं – हिंदी, पंजाबी, उर्दू, कश्मीरी,
      सिंधी, गुजराती, मराठी, बांग्ला, उड़िया और असमिया। संस्कृत से विकसित होने
      के कारण इन भाषाओं में न केवल संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में मिलते हैं,
      बल्कि व्याकरण के कई रूप भी इनमें समान या लगभग समान हैं। यही कारण है कि इन
      भाषाओं को परस्पर समझने या सीखने में कोई कठिनाई नहीं होती।
      
      किसी भी भाषा पर केवल अपने परिवार की अन्य भाषाओं का ही प्रभाव नहीं पड़ता,
      बल्कि पड़ोसी भाषाओं का भी पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। चाहे वे भाषाएँ अन्य
      भाषा परिवार की हों। भारत के दक्षिण में द्रविड़ भाषा परिवार की भाषाएँ हैं,
      जिनके साथ शताब्दियों से अन्य भारतीय भाषाओं का सम्पर्क रहा है। फलस्वरूप
      दोनों परिवारों की भाषाओं के बीच न केवल संस्कृति की समान धारा बहती है बल्कि
      ध्वनि, शब्द तथा व्याकरण के स्तर पर भी परस्पर आदान-प्रदान का अद्भुत
      दृष्टांत मिलता है। संस्कृत भाषा के तत्व इन सभी भाषाओं में समान रूप से
      मिलते हैं। मुगल काल में हिंदी भाषा पर प्रभाव डालने वाली दो प्रमुख भाषाएँ
      थीं – अरबी और फारसी, जिन्होंने विशेषतः उर्दू के माध्यम से हिंदी के
      शब्द-भंडार को अत्यधिक प्रभावित किया। इसी प्रकार हिंदी के शब्द-भंडार तथा
      वाक्य-रचना को गहराई से प्रभावित करने वाली दूसरी भाषा है अंग्रेजी। अंग्रेजी
      का प्रभाव मुख्यतः पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के रूप में अधिक
      महत्त्वपूर्ण है।
    
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