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उपयोगी हिंदी व्याकरण

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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक

समुच्चय बोधक


और किन्तु या आदि शब्दों से आप भली-भाँति परिचित हैं। इनका कार्य दो शब्दों (राम और श्याम कल जाएँगे), दो पदबंधों या दो वाक्यों को आपस में संयोजित करना है; इसलिए इन्हें योजक या संयोजक भी कहते हैं। संयोजक के दो प्रमुख भेद हैं—

1. समानाधिकरण: वे योजक जो दो समान स्तर के परस्पर स्वतंत्र अंशों को संबंद्ध करते हैं, जैसे — और या किंतु आदि।

2. व्याधिकरण: वे योजक जिनमें एक अंश मुख्य है और अन्य एक/अनेक अंश गौण हैं। जैसे — यद्यपि ... तथापि, कि, मानो, क्योंकि, इसलिए, कि, आदि।

1. समानाधिकरण योजक

    1. और, तथा, एवं आदि।
        न वहचाय पीता है, न काफी।
    2. या, अथवा; या … या; नहीं तो, अन्यथा; न कि
        तुमने किताब पढ़ी या/अथवा/कि नहीं।
        पढ़ाई करो नहीं तो/अन्यथा फेल हो जाओगे।
        चाहे तुम चलो, चाहे न चलो — मैं तो चल रहा हूँ।
    3. पर, परंतु, किंतु, लेकिन, मगर, बल्कि ...
        मोहन न केवल पढ़ाई में बल्कि खेल-कूद में भी तेज है।
    4. अतः, फलतः आदि।

2. व्याधिकरण योजक

    1. यदि ... तो, यद्यपि ... तथापि
    2. क्योंकि, इसलिए ... कि, ताकि
        मैं यहाँ इसलिए आया कि आपको आमंत्रित कर सकूँ।
        मैं अब घर जा रहा हूँ, क्योंकि मेरी तबियत ठीक नहीं है।
        मैं घर जा रहा हूँ, ताकि वहाँ आराम कर सकूँ।
    3. कि, अर्थात्, यानि ... यानि
       उसने कहा कि मैं कल आऊँगा।
       ईश्वर सर्वव्यापि, अर्थात्/यानि, सब जगह रहने वाला है।

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