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बलाघात-अनुतान-संगम
बलाघात: किसी शब्द के उच्चारण में अक्षर पर जो बल दिया जाता है उसे बलाघात कहते हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि 'बलाघात' अक्षर के 'स्वर' पर ही होता है। किसी भी शब्द के सभी 'अक्षर' समान बल से नहीं बोले जाते। हिंदी में शब्दों के उच्चारण में बलाघात होता है लेकिन उसके कारण अर्थ-भेद उत्पन्न नहीं होता। हिंदी में अक्षर के बलाघात के निम्नलिखित मुख्य रूप दिखाई देते हैं-
1. एकाक्षर वाले शब्दों में बलाघात स्वभावतः उसी अक्षर पर होता है, वह, जो, जल, आज आदि।
2. एकाधिक अक्षर वाले शब्दों में यदि सभी अक्षर ह्रस्व हों तो बलाघात उपांत्य (अंतिम से पूर्व) अक्षर पर होता है, जैसे - कमल, अगणित
नोट 'ह'/ महाप्राण व्यंजन से युक्त अक्षर पर बलाघात पड़ता है, जैसे क-लह
3. तीन-चार अक्षर वाले शब्दों में यदि मध्य अक्षर दीर्घ हो तो बलाघात उसी पर पड़ेगा, जैसे -
मसा'ला, झूमे'गा, समा'धि
बलाघात शब्द स्तर पर भी देखा जाता है, जैसे -
निम्नलिखित वाक्यों में शब्दों के बलाघात पर ध्यान दीजिए - तुम जाओ ।
(रुको मत फौरन जाओ )
आज मैं रामायण पढ़ूँगा। (कल किसी अन्य ने रामायण पढ़ने का काम किया था, आज मैं पढ़ूँगा)।
आज मैं रामायण पढ़ूँगा। (कल कुछ और पढ़ा था आज रामायण पढ़ूँगा।
अनुतान: बोलने में जो सुर का उतार-चढ़ाव (आरोह-अवरोह) होता है, उसे अनुतान कहते हैं। वाक्य स्तर पर इसका महत्व है पर शब्द स्तर पर भी इसका अवश्य महत्व हैं। एक ही शब्द 'अच्छा' की विभिन्न अनुतान से स्वीकृति के अर्थ में प्रश्नात्मक रूप में, आश्चर्य के अर्थ में बोला जा सकता है, जैसे -
अच्छा - सामान्य कथन/स्वीकृति
अच्छा? - प्रश्नवाचक
अच्छा! - आश्चर्य
आमतौर पर लिखित भाषा में अनुतान के हम विराम चिह्नों से देखते हैं, जैसे - प्रश्नवाचक चिह्न, आश्चर्य या विस्मय के लिए विस्मयादिबोधक चिह्न। एक ही वाक्य में ये तीनों चिह्न तीन भिन्न अनुतानों का बोध कराते हैं।
यह बहुत अच्छी तस्वीर है?
यह बहुत अच्छी तस्वीर है!
यह बहुत अच्छी तस्वीर है।
संगम: उच्चारण में केवल स्वरों और व्यंजनों के उच्चारण, उनकी दीर्घता, उनके संयोग और बलाघात का ही ध्यान नहीं रखना पड़ता वरन् पदीय सीमाओं को भी जानना होता है। इनका सीमा-संकेत ही संगम कहलाता है। प्रवाह में किन अक्षरों के बीच में हल्का-सा विराम है, इस पर ध्यान देना आवश्यक होता है। संगम वास्तव में इसी विराम का नाम है। संगम की स्थिति से बलाघात में भी अंतर आ जाता है। दो भिन्न स्थानों पर संगम से दो भिन्न अर्थ निकलते हैं, जैसे -
सिरका = एक तरह का तरल पदार्थ
सिर + का = सिर से संबद्ध
जलसा = उत्सव (आज कालेज में जलसा है।)
जल + सा = जल की तरह
मनका = माला का मनका
मन + का = मन का (भाव)
इसी प्रकार व्यंजन और स्वर तथा स्वर और व्यंजन के मध्य भी संग हो सकता है।
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