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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
हल् चिह्न
संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्यतः संस्कृत रूप ही रखा जाए,
परंतु जिन शब्दों में हिन्दी में हल चिह्न लुप्त हो चुका है, उनमें उसको फिर
से लगाने का यत्न न किया जाए, जैसे महान, विद्वान् आदि के न में हल चिह्न न्
नहीं लगाया जाए।
ध्वनि परिवर्तन
संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी को ज्यों-का-त्यों ग्रहण किया जाए। अतः
ब्रह्म को ब्रह्मा, चिह्न को चिन्ह, उऋण को उरिण में बदलना उचित नहीं होगा।
इसी प्रकार, ग्रहीत, दृष्टव्य, प्रदर्शिनी, अत्याधिक, अनाधिकार आदि अशुद्ध
प्रयोग ग्राह्य नहीं है। इनके स्थान पर क्रमशः गृहीत, प्रर्दशिनी, अत्याधिक,
अनाधिकार ही लिखना चाहिए।
ऐ, औ का प्रयोग
हिदी में ऐ (ै), औ (ौ) का प्रयोग दो प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के
लिए होता है। पहले प्रकार की ध्वनियाँ हैं और, ठौर आदि में तथा दूसरे प्रकार
की गवैया, कौवा आदि में। इन दोनों ही प्रकार की ध्वनियों को प्रदर्शित करने
के लिए इन्हीं चिह्नों (ऐ, ै,; औ, ौ) का प्रयोग किया जाए। गवय्या, कव्वा आदि
का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है।
पूर्वकालिक प्रत्यय
पूर्वकालिक प्रत्यय कर क्रिया से मिलाकर लिखा जाए, जैसे – मिलाकर, खा-पीकर,
रो-रोकर आदि।
शिरोरेखा का प्रयोग प्रचलित रहेगा।
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