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अध्याय 4
संधि
संधि शब्द का शाब्दिक अर्थ है मेल या मेल-मिलाप। यह प्रायः दो तत्त्वों या
घटकों के बीच होता है। किन्हीं कारणों से वे तत्त्व बिल्कुल पास-पास आ चुके
हैं और पास-पास न रहें ऐसा कोई विकल्प नहीं है। व्याकरण में भी संधि शब्द का
बिल्कुल ऐसा ही अर्थ है। शब्द रचना और पद रचना में ऐसी स्थितियाँ सदैव आती
हैं जब दो शब्द (समास रचना में) या शब्द-शब्दांश (उपसर्ग-प्रत्यय शब्द
की रचना में या रूप रचना में) बिल्कुल पास आते हैं और वे मिलकर एक स्वतंत्र
भाषिक इकाई जैसे “शब्द” या ”पद” बनाते हैं। उदाहरणार्थ समास रचना को लें।
हिम+आलय में दो शब्द हैं और मिलकर एक समस्त शब्द हिमालय बना रहे हैं, और इस
कारण हिम के अंतिम अंश (लिखित रूप में प्राप्त ह्रस्व अ) और आलय के आरंभिक
अंश (दीर्घ आ) दोनों इतने पास-पास आ गए हैं कि मेल अर्थात् संधि की अनिवार्य
स्थिति आ खड़ी हुई है। यह संधि का ही परिणाम है कि अंतिम ह्रस्व अ और आरंभिक
दीर्घ आ मिल कर आ बन गया है और इस प्रकार समस्त शब्द हिमालय बना। इसी प्रकार
लड़का (-आ + पन (प-) में संधि नियम से दीर्घ आ को ह्रस्व किया गया या बहू
(-ऊ) + एँ (ए-) में संधि नियम से दीर्घ ऊ को ह्रस्व किया गया। ध्यान रखें कि
संधि ध्वनियों के बीच होती है, शब्दों के बीच नहीं।
अब निम्नलिखित उदाहरणों को देखिए –
1. सत् (-त्) + (क-) कर्म = सत्कर्म
2. सत् (त्) + (ज-) जन = सज्जन
3. गिरि (-इ) + (ई-) ईश = गिरीश
4. इति (-इ) + (आ-) आदि = इत्यादि
5. दुः (ः) + (ज-) जन = दुर्जन
6. मही (-ई) + (इ-) इंद्र = महींद्र
7. उत् (-त्) + (श-) श्वास = उच्छ्वास
8. उत् (-त्) + (ह्-) हरण = उद्धरण
9. देव (-अ) + (इ-) इंद्र = देवेंद्र
यहाँ पास-पास आई ध्वनियों की निम्नलिखत स्थितियाँ दिखाई पड़ी हैं (यहाँ घटक
की अंतिम ध्वनि को पूर्वाध्वनि और बाद वाले घटक की आरंभिक ध्वनि को परध्वनि
संकेतित किया गया है):
स्थिति (1) : न तो पूर्वध्वनि में परिवर्तन, न परध्वनि में परिवर्तन।
जैसे –
सत् (-त्) + (क-) कर्म = सत्कर्म – सतकर्म।
किंतु यहाँ दोनों घटक एक ही शिरोरेखा के नीचे हैं, “त्“ लिपि नियमों के
अनुसार हुआ है।
स्थिति (2) : पूर्वध्वनि में परिवर्तन, किंतु परध्वनि में नहीं। जैसे
–
सत् (-त्) + (ज्-) जन = सज् जन – सज्जन
गिरि (-इ) + (-ई) ईश = गिरीश
इति (-ई) + (आ-) आदि = इत्यादि (इत् +य् + आदि)
दुः (ः) + (ज्-) जन = दुर + जन = दुर्जन
स्थिति (3): पूर्वध्वनि में कोई परिवर्तन नहीं, किंतु परध्वनि में
परिवर्तन। जैसे –
मही (-ई) + (इ-) इंद्र = महींद्र
स्थिति (4): जब पूर्वध्वनि और परध्वनि दोनों में परिवर्तन। जैसे –
उत् (-त्) + (श्-) श्वास = उच् + छ्वास = उच्छ्वास
उत् (-त्) + (ह्-) हरण = उद् + धरण = उद् धरण
ये दोनों तीसरी ध्वनि के रूप में भी आ सकते हैं; जैसे –
देव (-अ) + (इ-) इंद्र = देवेंद्र
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