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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
संधि युक्त समस्त पद या समस्त शब्द को फिर से संधिपूर्व अवस्था में
पहुँचाना संधि-विच्छेद कहा जाता है; जैसे –
हिमालय = हिम (अ-) + (आ-) आलय
जगन्नाथ = जगत् (-त्) + (न्-) नाथ
पुनर्जन्म = पुनः (ः) + (ज्-) जन्म
अब नीचे संधि और संधि के नियमों पर विस्तृत चर्चा की जा रही है।
ऊपर दिए हुए सभी उदाहरण संस्कृत शब्दों के हैं पर इससे तात्पर्य नहीं है कि
तद्भव शब्दों में संधि नहीं होती। हिंदी की प्रवृत्ति संयोगात्मक नहीं
वियोगात्मक है फिर भी संधि की प्रक्रिया मिलती है। इसी दृष्टि से हिंदी में
संस्कृत के संधि नियमों का प्रभाव दिन-पर-दिन घटता जा रहा है। यहीं कारण है
कि संधि नियम के अनुसार प्रयुक्त न कर अलग-अलग शब्द के रूप में प्रयुक्त किया
जाता है; जैसे –
राम + अभिलाषा को रामाभिलाषा न कहकर राम-अभिलाषा
देवी + इच्छा को देवीच्छा न कहकर देवी-इच्छा
इसी प्रकार विदेशी आगत शब्दों में संधि नियम नहीं लागू होते। जैसे – काँगेस +
अध्यक्ष को काँग्रेसाध्यक्ष, टिकट + आलय को टिकटालय नहीं लिखा जाएगा। यही बात
अन्य कुछ शब्दों के साथ भी है, जैसे – राम+आसरे को रामआसरे लिखा जायेगा न कि
रामासरे, बे+ईमान को बेईमान ही लिखा जाएगा। फिर भी हिंदी के अपने संधि-नियम
जो विकसित हो गए वे इस प्रकार हैं –
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