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7. हिंदी-क्षेत्र तथा बोलियाँ
हिंदी का क्षेत्र उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा,
हिमाचल प्रदेश और दिल्ली तक फैला है। इसके अलावा पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात,
बंगाल आदि देश के अधिकांश क्षेत्रों में यह संपर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त
होती है।
मूलतः खड़ी बोली से विकसित होने के बावजूद हिंदी विभिन्न बोलियों के तत्त्वों
से मिलकर बनी भाषा है। ब्रजभाषा तथा अवधी आदि का विपुल साहित्य समस्त
हिंदी-भाषी बोलियों की धरोहर है। हिंदी की साहित्यिक और भाषिक परंपरा बनाए
रखने में हिंदी की अन्य बोलियों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है।
हिंदी की बोलियों को मोटे तौर पर निम्नलिखित वर्गों में रखा जा सकता है:
1. पश्चिमी हिंदी – इसके अन्तर्गत पांच बोलियाँ हैं – ब्रजभाषा,
खड़ी बोली, हरियाणवी (या बांगरू), बुंदेली और कन्नौजी। मध्यकाल में ब्रजभाषा
प्रमुख साहित्यिक भाषा थी। सूरदास, नंददास आदि कवियों ने कृष्ण काव्य की रचना
इसी भाषा में की। ब्रज में गीत काव्य की समृद्ध परंपरा मिलती है। खड़ी बोली
दिल्ली, मेरठ, बिजनौर और सहारनपुर के आसपास बोली जाती थी।
2. पूर्वी हिंदी – इसमें अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी शामिल हैं।
तुलसीदास ने अवधी में प्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की और मलिक
मोहम्मद जायसी ने पद्मावती की। अवधी में प्रबंध-काव्य परंपरा विशेषतः विकसित
हुई।
3. राजस्थानी – यह राजस्थान में बोली जाने वाली बोलियों के समूह का
नाम है। इसकी प्रमुख बोलियाँ हैं – मेवाती, मारवाड़ी, हाड़ोती, मेवाड़ी आदि।
4. बिहारी – इसके अंतर्गत भोजपुरी, मगही और मैथिली बोलियाँ आती
हैं। मैथिल कोकिल विद्यापति की पदावली मैथिली में ही है।
5. पहाड़ी – इन भाषाओं के अंतर्गत मुख्यतः मंडियाली (हिमाचल की
बोली), गढ़वाली और कुमाऊँनी बोलियाँ शामिल हैं।
8. राजभाषा हिंदी
14 सितंबर, 1949 को भारत की संविधान सभा ने हिंदी को भारत संघ की राजभाषा
के रूप में स्वीकार किया। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा
हिंदी और लिपि देवनागरी है। हिंदी इन राज्यों की भी राजभाषा है – उत्तर
प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और केन्द्र
शासित दिल्ली। अंडमान निकोबार, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र ने द्वितीय भाषा
के रूप में इसे मान्यता दी है।
संपर्क भाषा के रूप में बोलचाल में हिंदी का प्रयोग भारत के लगभग सभी
क्षेत्रों में होता है। देश के अधिकांश क्षेत्रों में इसके अध्ययन तथा प्रसार
की व्यवस्था है। यह साहित्य के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान, वाणिज्य, शिक्षा
माध्यम तथा तकनीकी कार्यों की भाषा के रूप में विकसित हो रही है।
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