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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
9. भाषा और व्याकरण
हर भाषा की अपनी व्यवस्था होती है। एक ही भाव को व्यक्त करने के लिए अलग-अलग
भाषाओं में सामान्यतः अलग-अलग ध्वनियों, शब्दों और वाक्यों का प्रयोग होता
है। इस कारण ध्वनियों, शब्दों तथा वाक्यों की रचना से संबंधित नियम हर भाषा
में प्रायः अलग-अलग होते हैं। व्याकरण इन नियमों का संकलन तथा विश्लेषण कर
भाषा की एक सुनिश्चित व्यवस्था प्रस्तुत करता है।
व्याकरण मुख्यतः भाषा के नियमों का संकलन और विश्लेषण करता है। शैक्षिक
व्याकरण इन नियमों को स्थिर करता है। व्याकरण के विभिन्न नियमों के स्थिर
होने से भाषा में एक प्रकार की मानकता आती है जो भाषा को परिनिष्ठित बनाने
में सहायक होती है। विकास की आरंभिक अवस्था में भाषा में उच्चारण, शब्द
प्रयोग, वाक्य गठन तथा अर्थों के रूपों में प्रायः प्रयोजन रहित विकल्प मिलते
हैं। किन्तु जैसे-जैसे भाषा विकसित होती जाती है, वैसे-वैसे उस के प्रयोग के
रूप स्थिर होते जाते हैं। इससे भाषा के स्वीकार्य और अस्वीकार्य रूपों में
भेद करना सरल हो जाता है। शैक्षिक व्याकरण का एक प्रयोजन यह भी है कि वह
प्रचलित भाषा-प्रयोग का विश्लेषण कर समाज द्वारा ग्राह्य या सही भाषा का
संकेत दे।
व्याकरण भाषा के नियम नहीं बनाता। किसी भी भाषा-समाज के अधिकांश लोग या
शिष्ट वर्ग भाषा के जिस रूप का प्रयोग करते हैं उसी को व्याकरण आधार मानकर
उस भाषा के व्याकरण की रचना करता है। इस प्रकार व्याकरण मूलतः समाज द्वारा
सिद्ध प्रयोग का ही अनुसरण करता है। वह स्वयं अपने नियम बनाकर समाज को
प्रयोग करने को नहीं कहता। समय के साथ-साथ भाषा में परिवर्तन होता जाता है और
वैयाकरण भी उन परिवर्तनों को ध्यान में रखकर व्याकरण में यथावश्यक परिवर्तन
करता चलता है।
व्याकरण में भाषा का विश्लेषण कई स्तरों पर किया जाता है – ध्वनि तथा उच्चारण
के स्तर पर, लिपि तथा वर्तनी के स्तर पर, पद के स्तर पर वाक्य-रचना के स्तर
पर और अर्थ के स्तर पर। इस पुस्तक में हिंदी के संदर्भ में इन सभी विषयों पर
विचार किया जाएगा।
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