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प्रविशेषण

मोहन बहुत चतुर है, सोहन बड़ा परिश्रमी है। आदि वाक्यों को देखिए। यहाँ बहुत बड़ा आदि शब्द विशेषण के पहले लगे हैं तथा विशेषण की विशेषता, जैसे अधिकता, न्यूनता आदि को बाते रहे हैं। चूँकि ये विशेषण के विशेषण हैं अतएव उन्हें प्रविशेषण कहते हैं। इस प्रकार प्रविशेषण वे विशेषणात्मक शब्द हैं जो विशेषण की विशेषता बताते हैं।
उदाहरणार्थ —

मोहन बहुत चतुर है।
मोहन बहुत अधिक चतुर है।
मोहन अत्यधिक/अत्यंत चतुर है।
सोहन बड़ा परिश्रमी है।
सोहन अब बिल्कुल स्वस्थ है।
वह शाम को ठीक सात बजे आएगा।
वहाँ लगभग बीस आदमी थे।

सामान्यता प्रचलित प्रविशेषण है — बहुत, बहुत अधिक, अत्यधिक, अत्यंत, बड़ा, खूब, बिल्कुल, थोड़ा, कम, ठीक, पूर्ण, लगभग आदि।

विशेषण का संज्ञावत् प्रयोग

विशेषणों का संज्ञावत् (संज्ञा की तरह) प्रयोग प्रायः मिलता है। “उस मोटे को देखो” में मोटा शब्द मोटे व्यक्ति के लिए आया है। “बड़ों के बीच में नहीं बोलना चाहिए” में बड़ों से बड़े आदमियों का बोध होता है। “अमीरों और गरीबों के बीच की खाई बढ़ती जा रही है” में अमीर व्यक्तियों और गरीब व्यक्तियों के लिए अमीरों, गरीबों का प्रयोग हो रहा है। ध्यान रखें कि जब इनका प्रयोग संज्ञा की तरह होता है तब इनके रूप संज्ञा के समान चलते हैं, न कि विशेषण के समान । जैसे —

इन गरीबों को देखिए : इन गरीब आदमियों को देखिए।
बड़ों का कहना मानना चाहिए : बड़े लोगों का कहना मानना चाहिए।

विशेषणों की रचना

कुछ शब्द मूल रूप से ही विशेषण होते हैं, जैसे — सुंदर, निपुणस किंतु कुछ यौगिक रचना अर्थात् प्रत्यय, उपसर्ग आदि लगाने के बाद विशेषण बनते हैं, जैसे —

संज्ञा से — बनारसी, घरेलू आदि।
सर्वनाम से — इतना, उतना आदि; ऐसा, वैसा आदि; मुझ- सा आदि।
क्रिया से — भुलक्कड़, चालू आदि।
अव्यय से — बाहरी, ऊपरी आदि।

संज्ञा आदि के संबंधवाची रूप — मोहन की (किताब) आदि तथा क्रिया के, क्रिया से बने हुए (कृदन्ती रूप) — बहता हुआ (पानी), थका हुआ (आदमी) आदि विशेषण होते हैं। इन्हें क्रमशः संबंधवाची विशेषण तथा कृदंती विशेषण कहते हैं। तुलना— प्रयोग में- सा, - जैसा; — के समान से बने शब्द भी विशेषण होते हैं और इन्हें सादृश्यवाची विशेषण कहा जाता है। जैसे मोहन- सा/मोहन जैसा/मोहन के समान व्यक्ति मुश्किल से मिलता है।

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