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उपयोगी हिंदी व्याकरण

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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक

संख्या


निश्चित संख्या बोधक विशेषणों के मूल संख्याएँ (1,2,3,आदि) होती हैं। व्यवहार के अनुसार इनके निम्नलिखित भेद हैं:

(क) (1) पूर्ण संख्याबोधक विशेषण: 1,2,3  आदि पूर्णाक संख्याएँ यहाँ विशेषण के रूप में प्रयुक्त होती हैं। इन्हें गणनावाचक विशेषण भी कहते हैं।

(क) (2) अपूर्ण संख्याबोधक विशेषण: ¼ (पाव), ½ (आधा), ¾ (पौन), 1 ¼ (सवा), 1 ½(डेढ़), 1 ¾ (पौन दो), 2 ½ (ढाई), 3 ½ (साढ़े तीन हूँठा), (पुराना माप तोल) आदि। यहाँ भिन्न संख्याएँ विशेष रूप में आई हैं।

(ख) क्रमवाचक विशेषण: पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवाँ, छठा, सातवाँ आदि। ये शब्द क्रमानुसार किस स्थान पर आया है इसकी सूचना देते हैं।

(ग) आवृत्तिवाचक विशेषण: दुगुना, तिगुना, चौगुना आदि। दुहरा, तिहरा, चौहरा आदि (कितने तह हैं इसको बताता है)।

(घ) समुदायवाचक विशेषण: दोनों, तीनों, चारों (समुदाय के रूप में चार), विशेष बल देने पर — तीनों के तीनों, दोनों के दोनों।

(ङ) समुच्चयवाचक विशेषण: दर्जन (=12), जोड़ा/युग्म (=2), पच्चीसी, बतीसी, चालीसा, सतसई (700) आदि समुच्चय बताते हैं।

(च) प्रत्येक बोधक विशेषण: हर प्रत्येक आदि लगाकर, कई वस्तुओं में से प्रत्येक का बोध होता है।

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