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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

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योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।।23।।

दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आये हैं, इन युद्ध करनेवालों को मैं देखूँगा।।23।।

दुर्योधन को दुर्बुद्धि कहने का कारण दुर्योधन का राजहठ है। जैसा कि महाभारत के अध्येता जानते ही हैं कि दुर्योधन कुरुवंश के राज्य में पाण्डवों को किसी प्रकार का भाग नहीं देना चाहता था। यहाँ तक इंद्रप्रस्थ में बसाया गया नया राज्य भी उसने योजना बनाकर छल के द्वारा पाण्डवों से द्यूत मे हर लिया था। यह प्रकरण तत्कालीन समाज को अच्छी तरह ज्ञात था। अर्जुन जानना चाहता है कि इस प्रकार दूसरे की भोग्य सामग्री को बलात् हड़पने वाले व्यक्ति की सैन्य और मानसिक सहायता करने वाले लोग कौन हैं? वह एक बार फिर जानना चाहता है कि कौन से योद्धा समागत (दुर्योधन के साथ मिलकर उससे युद्ध करने आये) है। यों तो युद्ध आरंभ होने से पहले उसे अधिकतर लोगों के नाम और उनकी मानसिकता ज्ञात थी, फिर भी युद्ध करने से पहले उन्हें एक बार पुनः देखकर अर्जुन अपने स्वयं के युद्ध करने के निर्णय को सही ठहराना चाहता है। महाभारत का युद्ध तत्कालीन लोगों के सबसे बड़े सैन्य बल के बीच लड़ा गया था। आज भी हम जब कोई दूरगामी परिणामों वाला कार्य आरंभ करने को उद्यत होते हैं तब कार्य आरंभ करने से पहले उसकी बार-बार समीक्षा करते रहते हैं। यदि आजकल की सरकारों और व्यापारों में चलने वाले बड़े-बड़े प्रयासों की तरफ हम दृष्टि डालें तो हम सभी देखते हैं कि उनका साप्ताहिक, मासिक और वार्षिक आंकलन होता ही रहता है। अतएव अर्जुन और दुर्योधन दोनों का अपनी और विरोधी दल की सेनाओं का पुनरावलोकन सामान्य व्यवहार प्रतीत होता है।

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