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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

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सञ्जय उवाच



एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्।।24।।
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्।
उवाच पार्थं पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति।।25।।

संजय बोले - हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहने पर महाराज श्रीकृष्णचन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देख।।24-25।।

अर्जुन के यह कहने पर हृषीकेश अर्थात् इंद्रियों के ईश भगवान श्रीकृष्ण जो उसके रथ के सारथि का भार संभाले हुए थे, उसकी इच्छा को समझ उस युद्ध के केन्द्र-बिंदु भीष्म, द्रोणाचार्य और अन्य महत्वपूर्ण राजाओं के सामने अपने रथ को ले गये और यह वहाँ पर एकत्रित कौरवों को दिखाया। कौरवों के उस पक्ष में भीष्म, द्रोणाचार्य, दुर्योधन, दुःशासन, कर्ण, शकुनि आदि अपनी सेनाओं के साथ युद्ध के लिए प्रस्तुत थे। इस दृश्य को हम आजकल विभिन्न प्रकार के खेलों, जैसे ओलंपिक, विश्व फुटबाल और वर्ल्ड कप क्रिकेट के अंतिम खेल के आरंभ होने वाले दृश्य से मिला सकते हैं। खेल आरंभ होने के ठीक कुछ क्षणों पहले दर्शकों में कितना तनाव और उत्तेजना रहती है, हम इस तथ्य से भली-भाँति परिचित हैं।

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