लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

काशी में


यह यात्रा कलकत्ते से राजकोट तक की थी। इसमें काशी, आगरा, जयपुर, पालनपुर और राजकोट जाना था। इतना देखने के बाद अधिक समय कहीँ देना संभव न था। हर जगह मैं एक-एक दिन रहा था। पालनपुर के सिवा सब जगह मैं धर्मशाला में अथवा यात्रियों की तरह पण्डो के घर ठहरा। जैसा कि मुझे याद हैं, इतनी यात्रा में गाड़ी-भाड़े के सहित मेरे कुल इकतीस रुपये खर्च हुए थे। तीसरे दर्जे की यात्रा में भी मैं अकसर डाकगाड़ी छोड़ देता था, क्योंकि मैं जानता था कि उसमें अधिक भीड़ होती हैं। उसका किराया भी सवारी (पैसेन्जर) गाड़ी के तीसरे दर्जे के किराये से अधिक होता था। यह एक अड़चन तो थी ही।

तीसरे दर्जें के डिब्बो में गंदगी और पाखानो की बुरी हालत तो जैसी आज है, वैसी ही उस समय भी थी। आज शायद थोड़ा सुधार हो तो बात अलग हैं। पर पहले औऱ तीसरे दर्जे के बीच सुभीतो का फर्क मुझे किराये के फर्क से कहीं ज्यादा जान पड़ा। तीसरे दर्जे के यात्री भेड़-बकरी समझे जाते हैं और सुभीते के नाम पर उनको भेड-बकरियों के से डिब्बे मिलते हैं। यूरोप में तो मैंने तीसरे ही दर्जे में यात्रा की थी। अनुभव की दृष्टि से एक बार पहले दर्जे में भी यात्रा की थी। वहाँ मैंने पहले और तीसरे दर्जे के बीच यहाँ के जैसा फर्क नहीं देखा। दक्षिण अफ्रीका में तीसरे दर्जे के यात्री अधिकतर हब्शी ही होते है। लेकिन वहाँ के तीसरे दर्जे में भी यहाँ के तीसरे दर्जे से अधिक सुविधायें हैं। कुछ प्रदेशों में तो वहाँ तीसरे दर्जें में सोने की सुविधा भी रहती हैं और बैठके गद्दीदार होती हैं। हर खंड में बैठने वाले यात्रियों की संख्या की मर्यादा का ध्यान रखा जाती हैं। यहाँ तो तीसरे दर्जे में संख्या की मर्यादा पाले जाने का मुझे कोई अनुभव ही नहीं हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book