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लेख-आलेख

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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आपके लिए हुजूर

रहीम बादशाही ठसके के साथ जीते थे। आगरा में अपनी हवेली को बड़े वैभव और साजसज्जा के साथ अलंकृत कर रखा था। उसमें बैठने योग्य सिंहासन बनवाकर सोने के चोबों पर कारचोबी शामियाना लगवाया था जिसमें मोतियों की झालर लगी थीं। छत्र, चंवर आदि जैसे राजचिह्न भी थे। कुछ चुगलखोरों ने रहीम द्वारा राजसी वैभव दिखाने और प्रतीक धारण करने की शिकायत अकबर से कर दी। अकबर स्वयं रहीम की हवेली में गया और छत्र, चंवर जैसे राजकीय प्रतीकों के प्रयोग का कारण पूछा। रहीम ने तत्काल उत्तर दिया,´´ये सभी हुजूर के लिए ही तैयार रखे हैं ताकि जब आप तशरीफ लाएं, मुझे आपके लिए ये चीज़ें दूसरों से मांगने की शर्मिंदगी न उठानी पड़े।´´

भाट की छूटी जान

रहीम जहांगीर के राज्यकाल में भी दरबारी थे। एक बार जहांगीर तीरंदाजी कर रहा था। किसी भाट के बढ़चढ़ कर व्यंग्य बोलने पर वह रुष्ट हो गया। उसे पकड़वा लिया और हाथी के पैरों तले कुचलवाने की आज्ञा दे दी। भाट तो भाट, उसने फिर हाजिरजवाबी का प्रश्रय लेते हुए निवेदन कर डाला, ´´हुजूर, इस नाचीज़ के लिए हाथी के पैर की क्या जरूरत है- एक चूहे या चिड़े का पैर पर्याप्त है। हाथी का पैर तो ख़ानख़ानां के लिए चाहिए, जो बड़े आदमी हैं।´´ जहांगीर ने प्रतिक्रिया जानने के लिए ख़ानख़ाना की ओर देखा। रहीम ने तत्काल उत्तर दिया, ´´हुजूर के सदके से, ईश्वर ने मुझ जैसे तुच्छ व्यक्ति को ऐसा कर दिया कि यह भाट मुझे बड़ा आदमी समझता है। मैंने उसी समय ईश्वर को धन्यवाद दिया और कहा कि जब इस भाट का अपराध क्षमा हो तो इसे पांच हजार का ईनाम दे देना। हुजू़र की जान और माल को दुआ देगा।´´ स्वयं पर चोट करने वाले व्यक्ति को रहीम ने अपनी हाजिरजवाबी से न केवल बचा लिया पांच हजार रुपये भी दिलवा दिए।

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