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बाइबिल में ऐसी बहुत कहानियां आती हैं जिनमें गधों का जिक्र बहुत आदरपूर्वक किया गया है। प्रभु ईसा मसीह जिस समय जेरुसलम पहुंचे वे गधे पर बैठे हुए उसे धन्य कर रहे थे। उसे ´खर-ए-ईसा´ कहा गया।
खोजा (मुल्ला) नसरुद्दीन का नाम किसने नहीं पढ़ा-सुना होगा। वह बुखारा का रहने वाला था। स्वभाव से मस्तमौला, फटेहाल और विचारों से क्रांतिकारी था। गरीबों का हमदर्द और अमीरशाही के खिलाफ था। उसे बागी घोषित कर दिया गया था। खोजा बुखारा से अपने गधे पर बैठ निकल भागा। दस साल तक तमाम मुल्कों और शहरों में भटकने के बाद वह अपने शहर वापस लौटा। उसके साथ था तो सिर्फ उसका गधा- उसका सच्चा और वफादार साथी - जो अपने मालिक के मिजाज़ और तौर तरीकों से परिचित था। उसे दुनिया का सबसे चालाक और शरारती गधा माना गया है।
खोजा नसरुद्दीन और उसके गधे के विषय में ´अलिफ लैला की शहरजाद की 382वीं रात´ में जिक्र आता है- ´´यह भी बयान किया गया कि वह सीधा सादा इंसान अपने गधे की लगाम पकड़े चल रहा था और गधा पीछे-पीछे आ रहा था।´´ खोजा नसरुद्दीन ने ओस से नम खेत, हरे भरे बाग और उफनाती नदियां, नंगी बंजर पहाडियां, हंसते मुस्कराते चरागाह सब अपने गधे पर बैठ कर पार किए थे। बगदाद, इस्ताम्बूल, तेहरान, बख्शी सराय, तिफलिस, दमिश्क, तबरेज, अखमेज आदि स्थानों की यात्रा खोजा ने अपने गधे पर बैठकर सम्पन्न की थी। खोजा अपने गधे पर घोड़े की तरह जीन कसता था। उसके गधे को हरी तिपतिया घास बहुत प्रिय थी।
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