नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
|
0 |
श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
18
फूल और धूल
दो फूल खिले, दो धूल मिले !
है अन्त यही सब का निश्चित
दो दिन पीछे, दो दिन पहले।
यह किस का आज सुहाग लुटा,
यह किस की मांग सिंदूर भरा ?
यह किस को लहरें लील गईं -
यह कौन जलधि से उठ उभरा ?
किन आँखों में मुसकान मुखर,
यह कौन प्रभाती गाता है ?
झुक आई यह किस की सन्ध्या,
किस के नयनों से अश्रु ढले ?
जीवन-प्याले में क्रूर मृत्यु,
साँसों की हाला पीती है;
हम समझे यौवन को अक्षय -
पर अन्त सुराही रीती है ,
लेकिन जब तक दो घूँट बचे,
मैं क्यों न नियति पर कुछ हँस लूँ
शायद मेरी मुसकान कभी
बन कर कोई पथ-दीप जले !
कितनी मधुऋतु, कितने पतझड़,
कितने उत्थान, पतन प्रति क्षण ;
इस विश्व महोदधि में कितना -
अनजाना नन्हा मैं जल-कण !
लेकिन लघु तन अरमान बहुत,
सीमित लहरें तूफ़ान बहुत -
है चाह यही कोई प्यासा
पी मुझ को दो डग और चले !
यों तो मैं अपने हाथों से
सी लूँगा अपना आप कफ़न
मन की हर उठती पीड़ा को -
कर लूंगा मैं चुपचाप दफ़न;
पर आशा बन तुम साथ रहो,
विश्वास न बन जाओ मेरे ;
कोरे विश्वासों में कोई
अपने को कब तक आप छले !
लो, मंज़िल का कुछ छोर नहीं,
पर पथ का अन्त हुआ मेरे ;
दो क्षण विश्राम न ले पाया -
उखड़े जाते अपने डेरे ;
कोई पूछे तो कह देना
यह असमय ही मुरझाया था
इस करुण कहानी से शायद
पथ का कोई पाषाण गले !
दो दिन पीछे, दो दिन पहले !
0 0 0
|