नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
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कहाँ अन्त है ?
पग थके जा रहे, पथ बढ़ा जा रहा,
इस सफ़र का बताओ कहाँ अन्त है ?
एक आई लहर, नाव तिरने लगी,
एक भँवर आ गई, घूम-फिरने लगी;
एक कहानी नियति ने लिखी इस तरह -
होंठ हँसने लगे, आँख झिरने लगी;
तुम कहे जा रहे, मैं सुने जा रहा,
इस कथा का बतानो कहाँ अन्त है ?
रात भर चाँद की आँख रोई बड़ी,
पालकी चाँदनी की संजोई खड़ी ;
पर धरा की निगोड़ी दुल्हन बाँह पर -
गाल रख कर अलस मौन सोई पड़ी ;
औ' प्रणय का पहर यों लुटा जा रहा,
इस व्यथा का बतायो कहाँ अन्त है ?
एक क्षण यदि हँसी का कभी जुट गया,
कारवाँ साँस का राह में लुट गया;
ज़िन्दगी आँसुओं में रही भीगती --
प्यार का शव बिना ही कफ़न उठ गया
दान जितना किया, ऋण बढ़ा जा रहा,
रूप की याचना का कहाँ अन्त है ?
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