नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
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दान और प्रतिदान
तुम ने दिया आघात,
तुम दानी,
मैं अकिंचन हूँ
मैं तुम्हें क्या दूँ?
दर्द लौटा दूँ?
जो मिला तुम से, तुम्हीं को दूं ?
नहीं,
यह मुझ से न होगा।
आज जब गठरी टटोली,
हो गया लज्जित ;
क्या कमाया !
जो चला था साथ में पाथेय ले,
वह भी गँवाया !
अब तुम्हें क्या दूं ?
खाली हाथ लौटा दूं ?
नहीं,
यह मुझ से न होगा।
एक ही धन पास था मेरे बचा -
अपने लिए
अपनी क्षमा।
आज तक उस के सहारे चल रहा था,
अहम को दे बल रहा था।
जब कभी मैं डगमगाया या थका,
अपनी क्षमा से पाप को अपने ढँका।
वह बहुत मेरे निकट है,
जानता हूँ।
पर, किसी का दान मैं कैसे सहूँ !
लूँ ,
और बदले में न दूँ?
नहीं,
यह मुझ से न होगा।
इस लिए,
मेरी क्षमा लो।
ठीक से तोलो,
अगर कुछ कम रहे,
बोलो !
तो, हो गया तय--
अब तुम्हारा दर्द मेरा है
औ' क्षमा मेरी, तुम्हारी।
अब न तुम अपनी सजल करना कभी आँखें
औ' क्षमा खुद को नहीं मैं भी करूँगा;
क्यों कि
सूँघे पुष्प -
अर्चना के काम फिर आते नहीं हैं।
दान लौटाते नहीं हैं।
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