नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
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फूल, गंध और आदमी
लाख फूल को कैद किया, पर गंध नहीं बँध पाई,
सभी पाश छोटे कर आई है मेरी तरुणाई।
पीत पात जब झरे, ललौंहे द्रुम डालों में फूटे,
मिल जायेंगे और नये यदि साथ पुराने छूटे;
और अगर इस पंथ बीच मैं रह भी गया अकेला
कुछ सपनों, कुछ विश्वासों का जुड़ आयेगा मेला;
तुम ने समझा होगा मेरे पंख बिखर जायेंगे
लेकिन मैं कर आया हूँ झंझा के घर पहुनाई।
लाख फूल को कैद किया, पर गंध नहीं बँध पाई,
सभी पाश छोटे कर आई है मेरी तरुणाई।
घन अँधियाली मावस वाली जब घिर आया करती,
मेरे अन्तर के गोमुख से ज्योति-त्रिपथगा झरती;
अनुभव ने दी है मुझ को यह परिभाषा जीवन की
क्षितिज दृष्टि का भ्रम है केवलसीमा नहीं गगन की;
मेरे पहरेदारों को कोई इतना समझाये
दर्पण उस का ही है जिस की प्रतिबिम्बित परछाईं।
लाख फूल को कैद किया, पर गंध नहीं बँध पाई,
सभी पाश छोटे कर आई है मेरी तरुणाई।
सभी लहर तट छू ही जाएँ, यह तो नहीं जरूरी,
कुछ प्रवाह की अपनी भी तो होती है मजबूरी;
बहुत बहुत अकुलायेगामन, यह तो मैं ने माना
अमृत-पुत्र को नहीं मरण के गाँव किन्तुरह जाना;
मेरी मस्ती को नीलाम चढ़ाने वालो, सुन लो
कभी चाँद के घर उस की रह पाई नहीं जुन्हाई।
लाख फूल को कैद किया, पर गंध नहीं बँध पाई,
सभी पाश छोटे कर आई है मेरी तरुणाई।
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