आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
आग्नेयी
गायत्री को अग्निस्वरूपा कहा गया है। अग्निहोत्र यज्ञ के द्वारा वह प्रतिष्ठित, पूजित एवं परिपुष्ट होती है। जिसकी अंतरात्मा में प्रवेश करती है, उसे समुचित उष्णता, प्रतिभा, स्फूर्ति, तेजस्विता प्रदान करती है। जैसे अग्नि में पड़ने वाली प्रत्येक वस्तु उसी के जैसे गुण और रूप की बन जाती है। उसी प्रकार गायत्री रूपी अग्नि में प्रवेश करने वाला साधक भी उस आदिशक्ति की विशेषताओं से भर जाता है। अग्नि जैसे कूड़े-करकट को जला देती है वैसे ही मल-आवरणों, ताप-पाप को, कुविचारों-कुसंस्कारों को गायत्री रूपी अग्नि जला डालती है। अग्नि प्रकाशवान है, साधक के अंतःकरण में भी अज्ञानांधकार को समाप्त करने वाला प्रकाश उत्पन्न होता है। तांत्रिक विधान के अनुसार गायत्री मंत्र अभिचारात्मक 'आग्नेयास्त्र' भी बन सकता है, जो प्रचंड गोला बारूद के ढेर से भी अधिक दाहक एवं नाशक शक्ति से भरपूर होता है।
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