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आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
आसनस्थिता
एक स्थान पर निष्ठापूर्वक बैठने, मन को जगह-जगह न डुलाकर एक लक्ष्य पर केंद्रित करने को आसन कहते हैं। गायत्री शक्ति का अवतरण उन्हीं मनःक्षेत्रों में होना संभव है जो सांसारिक कामनाओं और मानसिक उद्वेगों एवं आवेशों से चंचल नहीं रहते वरन् शान्ति, स्थिरता, निष्ठा, संतोष और प्रसन्नता को धारणकर आत्मोन्नति की दिशा में प्रयत्नशील रहते हैं। गायत्री आसन स्थिता इसलिए कही गई हैं कि उनका अनुग्रह चंचल, अस्थिर मति के लोगों को नहीं वरन् उन लोगों को प्राप्त होता है, जो स्थान, भावना, लक्ष्य और आकांक्षा की दृष्टि से स्थिर हैं एवं दीर्घकाल तक धैर्य के साथ प्रेमपूर्वक साधना में संलग्न रहते हैं।
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