स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आरोग्य कुंजी आरोग्य कुंजीमहात्मा गाँधी
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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख
५. वायु-हवा
जैसे पहले चार तत्त्व उपयोगी हैं वैसे ही यह पांचवां तत्त्व भी अत्यन्त उपयोगी है। जिन पाँच तत्त्वोंका यह मनुष्य-शरीर बना है, उनके बिना मनुष्य टिक ही नहीं सकता। इसलिए वायुसे किसीको डरना नहीं चाहिये। आम तौर पर हम जहां कहीं जाते हैं, वहां घरमें वायु और प्रकाशका प्रवेश बन्द करके आरोग्यको खतरेमें डालते हैं। सच तो यह है कि यदि हम बचपनसे ही हवाका डर न रखना सीखे हों, तो शरीरको हवा सहन करनेकी आदत हो जाती है और जुकाम बलगम इत्यादिसे हम बच जाते हें। हवाके प्रकरणमें इस बारेमें मैं लिख चुका हूँ। इसलिए वायुके विषयमें यहां अधिक कहनेकी आवश्यकता नहीं रहती।
गांधीजी जब १९४२-'४४ के बीच आगाखां महल, पूना में नजरबन्द थे, तब उन्होंने ये प्रकरण लिखे थे। जैसा कि मूल पुस्तक की हस्तलिखित प्रति बतलाती है, उन्होंने २८-८-'४२ को ये प्रकरण लिखने शुरु किये और १८-१२-'४२ को इन्हें पूरा किया था। उनकी दृष्टि में इस विषय का इतना महत्त्व था कि दे हमेशा इन्हें प्रेस में देनेसे हिचकिचाते रहे। वे धीरज रखकर इन प्रकरणोंको बार करके तब तक दोहराते रहे, जब तक इस विषय पर प्रकट किये गये अपने विचारों से उन्हें पूरा सन्तोष न हो गया। अगर उनका हमेशा बढ़ने वाला अनुभव इन प्रकरणों में कोई सुधार करने की प्रेरणा देता, तो वैसा करने का उनका इरादा था। मूल पुस्तक गुजराती में लिखी गई थी, जिसका हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद गांधी जीने अपनी देखरेख में डॉ० सुशीला नय्यर से करवाया था। घटा-बढ़ाकर अंतिम रूप देने की दृष्टि से गांधीजी ने इन दोनों अनुवादों को देख भी लिया था।
इसलिए पाठक यह मान सकते हैं कि तन्दुरुस्ती के महत्त्वपूर्ण विषय पर गांधीजी अपने देशवासियों से और दुनिया से जो कुछ कहना चाहते थे, उसका अनुवाद खुद उन्होंने ही किया है। ईश्वर की और उसके प्राणियों की सेवा गांधीजी के जीवन का पवित्र मिशन था और तन्दुरुस्ती के प्रश्न का अध्ययन उनकी दृष्टि में उसी सेवा का एक अंग था।
अहमदाबाद,
२४-७-'४८
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