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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 2

महर्षि वेदव्यास

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1996
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 61
आईएसबीएन :00000000

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गीता के दूसरे अध्याय में भगवान् कृष्ण सम्पूर्ण गीता का ज्ञान संक्षेप में अर्जुन को देते हैं। अध्यात्म के साधकों के लिए साधाना का यह एक सुगम द्वार है।


अर्जुन उवाच

स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।।54।।

अर्जुन बोले - हे केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है? वह स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?।।54।।

अब तक भगवान् की बातों को सुनने के बाद स्वाभाविक रूप से अन्य लोगों की भाँति अर्जुन भी  जानना चाहता है कि स्थिरबुद्धि पुरुष की पहचान क्या है? यह एक स्वाभाविक प्रश्न है, हम जब किसी से प्रभावित होते हैं, तब उसके हाव-भाव जीवन शैली सबका अनुकरण करना चाहते हैं। उसके बारे में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं। स्थितप्रज्ञ पुरुष के सम्बन्ध में भगवान् अर्जुन से इसके पूर्व भी कुछ चर्चा कर चुके हैं। इसलिए स्थितप्रज्ञ पुरुष की प्रशंसा सुन चुकने के कारण अर्जुन अपने कुछ प्रश्न भगवान के समक्ष रखता है। वह जानना चाहता है कि स्थितप्रज्ञ पुरुष कैसे दिखते हैं, कैसे बैठते, चलते और बोलते इत्यादि हैं। यदि आप किसी के संबंध में बहुत प्रशंसा सुनते हैं और उनकी तरह बनना चाहते हैं, तो यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आप इस बारे में पूर्णतः सही हैं। यह जानकारी आपको दो कारणों से चाहिए होती है। एक तो यह कि आप प्रशंसित व्यक्ति को ठीक तरह पहचान और समझ सकें, इस प्रकार उनके गुण अपने में धारण कर सकें।

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