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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर अपने विषय में पाकिस्तान को रुचि लेते देख परेशानी अनुभव करने लगी थी। इस कारण वह उपन्यास पढ़ने में अपना चित्त नहीं लगा सकी। उसने मोहसिन को बुला लंच के समय दो आदमियों के लिए खाना तैयार करने को कहा और स्वयं सोने के कमरे में जा पलंग पर लेटी हुई पाकिस्तान से भागने की घटना पर विचार करने लगी। इस घटना को अभी आठ दिन ही हुई थे। आठ दिन पूर्व की सायंकाल उसके बेयरे मुश्ताक अहमद ने नसीम के हाथ यह सूचना भेजी थी कि गवर्नर जनरल बहादुर रात का खाना अपनी लड़की के साथ खायेंगे।
यह महीने में एक-दो बार होता रहता था। इस कारण इसमें किसी प्रकार की विलक्षणता न देख नज़ीर चुप रही। मगर नसीम ने कहा, ‘‘गवर्नर बहादुर ने यह कहलवा भेजा है कि वह रात यहां ही सोयेगे।’’
‘‘तो ऐसा करो! उनके लिए एक बैडरूम तैयार कर दो।’’
‘‘कौन सा बैडरूम तैयार करूं?’’
‘‘नम्बर तीन कर दो।’’
‘‘उनका हुक्म है कि बैड रूम नम्बर दो होना चाहिए।’’
नज़ीर इस नयी बात का अभिप्राय न समझ विस्मित नसीम का मुख देखने लगी। नसीम ने अपने कहने का अभिप्राय समझा दिया। उसने कहा, ‘‘आपके और बैड-रूम नम्बर दो के बीच आने-जाने का मार्ग है। जब लेडी मारग्रेट यहां रहती थीं तो ये दो बैड-रूम कभी-कभी प्रयुक्त होते थे और यह बात सर्व विख्यात थी कि मारग्रेट गवर्नर बहादुर की अविवाहित पत्नी थी।’’
‘‘मगर मैं तो उनकी लड़की हूं?’’
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