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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘यही तो कह रही हूं।’’
‘‘तो ऐसा करो! गवर्नर बहादुर के लिए बैडरूम नम्बर दो और मेरे लिए बैड रूम नम्बर तीन तैयार रखो। मैं रात उसमें सोऊंगी। मगर देखो, यह बात किसी को बताना नहीं।’’
‘‘अच्छी बात हुजूर!’’
‘‘अपने आदमी से भी नहीं कहना।’’
‘‘उस गधे को बताने की आवश्यकता भी नहीं।’’
गवर्नर जनरल नज़ीर के घर खाने के समय से आधा घण्टा पूर्व आये और कहने लगे, ‘‘मुझे यह बात विश्वस्त सूत्र से पता चली है कि उन दिनों जब तुम माँ के पेट में आयी थीं तब तुम्हारी माँ का सम्बन्घ कई अन्य लोगों से भी था और तुम उनमें से किसी एक की लड़की हो।’’
माँ के चरित्र पर लांछन लगते देख नज़ीर को बहुत दुःख हुआ, परन्तु वह इस सब वार्त्तालाप का अर्थ समझती हुई अपने मन में पाकिस्तान से भागने का विचार करने लगी थी।
उसने बात माँ के विषय से बदल कर पाकिस्तान पर चला दी उसने कहा, ‘‘पापा! कराची में आज एक जलूस का समाचार है कि गवर्नर बहादुर के विरुद्ध ‘स्लोगन’ (नारे) लगाये गए हैं।’’
‘‘कुत्तों के भौंकने की मैं चिन्ता नहीं करता।’’
‘‘मगर सेना में भी तो आपके विषय में निन्दा सुनने में आ रही है।’’
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