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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘यह तुम्हें किसने बताया है?’’
‘‘आपने सेना के सब बड़े-बड़े अफसरों को सेना-कार्य से बदल कर सिविल कार्य में लगा दिया है और इससे वे लोग असन्तुष्ट प्रतीत होते हैं।’’
‘‘मगर सेना से बदले जाने पर तो उनको प्रसन्न होना चाहिए। मसलन जनरल वर्की को मैंने अमेरिका में राजदूत बना कर भेज दिया है। वह इससे बहुत प्रसन्न था।’’
‘‘नहीं पापा! उनकी बीवी उस दिन अज़ीज साहब से शिकायत कर रही थी।’’
‘‘अज़ीज़ अहमद ने मुझे तो कुछ बताया नहीं।’’
‘‘उस दिन के उपरान्त आप आज ही तो रावलपिण्डी लौटे हैं। कदाचित् उसे आज आपसे पृथक, में बात करने का अवसर ही नहीं मिला।’’
‘‘हां! मैंने कल आते ही उसे लाहौर भेज दिया था। लाहौर हाईकोर्ट में एक समाचार-पत्र में मेरी आज्ञा कि पाकिस्तान सरकार समाचार-पत्रों के प्रबन्ध और सम्पत्ति जब्त कर सकती है, के खिलाफ पिटीशन की हुई है। अजीज उसकी पैरवी के लिये गया हुआ है।’’
‘‘पापा! अपने समीप विश्वस्त अधिकारियों को रखना चाहिए और पब्लिक के राजनीतिक लोगों से भी मेलजोल करना चाहिए।’’
‘‘ये सब बेईमान हैं। राजनीति का अर्थ ही बेईमानी है।’’
‘‘पापा...।’’
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